बता दें कि आजमगढ़ हमेशा से सपा बसपा का गढ़ रहा है। बीजेपी अस्तित्व में आने के बाद से ही तीसरे नंबर की लड़ाई लड़ती रही है। वर्ष 1991 की राम लहर में बीजेपी यहां दो सीट और वर्ष 1996 में एक सीट जीतने में सफल हुई थी। इसके बाद यहां बीजेपी का कभी खाता नहीं खुला। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में जब पार्टी ने यूपी में 325 सीट हासिल कर प्रचंड बहुमत हासिल किया उस समय भी पार्टी आजमगढ़ में कोई करिश्मा नहीं कर सकी। उसे दस में से सिर्फ एक सीट फूलपुर पर जीत हासिल हुई।
बीजेपी के लिए अच्छी सिर्फ एक बात रही कि वह चार सीट पर पहली बार दूसरे नंबर पर चली गयी और दो सीट तो 2 से ढ़ाई हजार के अंतर से हारी। इसकी मात्र एक वजह थी अति पिछड़ों और आति दलितों की पार्टी के प्रति लामबंदी। अब पार्टी में भरोसा जगा है कि अगर वह कुछ प्रतिशत मुस्लिम और यादव अपने पक्ष में कर लेती है तो यहां सपा और बसपा का तिलिस्म भेदने में कामियाब हो जाएगी। यहीं वजह है कि सदस्यता अभियान में पार्टी का सर्वाधित फोकश आजमगढ़ पर है। पार्टी पिछले एक माह में दो लाख सदस्य बना चुके है। पार्टी के वरिष्ठ नेता रमाकांत मिश्र का कहना है कि पार्टी ने जिस तरह का प्रदर्शन वर्ष 2017 व 2019 में किया है उससे साफ है कि पार्टी के प्रति जनता का विश्वास बढ़ा है। यही वजह है कि सभी जाति धर्म के लोग पार्टी के साथ जुड़ रहे है। आने वाले चुनाव में बीजेपी यहां विपक्ष का सूपड़ा साफ करेगी।