scriptमायावती ने हार की खीझ मिटाने के लिए ने डा. बलिराम को दिया झटका, पूर्व मंत्री को बनाया प्रत्याशी | bsp declared candidate on lalganj loksabha seat for 2019 election | Patrika News

मायावती ने हार की खीझ मिटाने के लिए ने डा. बलिराम को दिया झटका, पूर्व मंत्री को बनाया प्रत्याशी

locationआजमगढ़Published: Feb 14, 2018 02:44:15 pm

Submitted by:

Ashish Shukla

मोदी लहर में तीसरे स्थान पर पहुंच गये पूर्व सांसद डा. बलिराम

bsp politics

मोदी लहर में तीसरे स्थान पर पहुंच गये पूर्व सांसद डा. बलिराम

रण विजय सिंह

आजमगढ़. सपा बसपा के गठबंधन की चर्चा के बीच बसपा सुप्रिमों मायावती ने मुलायम सिंह यादव के संसदीय जिले की लालगंज सीट पर प्रत्याशी की घोषणा कर एक तीर से कई शिकार किये है। एक तो वे सपा और कांग्रेस को यह संदेश दे दिया कि वे अकेले दम पर लोकसभा चुनाव 2019 में उतरने के लिए तैयार है। साथ ही उन्होंने पूर्व सांसद डा. बलिराम को यह भी समझा दिया कि पार्टी हितों की अनदेखी करने वालों की उनके यहां कोई जगह नहीं है। वैसे 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए डा. बलिराम के बजाय पूर्व मंत्री घूरा राम को लालगंज से प्रत्याशी बनाये जाने से बलराम समर्थकों में जो गुस्सा है उसका खामियाजा बसपा को भुगतना पड़ सकता है।
गौर करे तो लोकसभा चुनाव में सूपड़ा साफ होने और विधानसभा चुनाव 2017 में करारी हार के बाद बसपा को विपक्षी दल डूबती जहाज मान रहे हैं लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी को बड़ी जीत से रोकने के लिए बसपा के सहयोग के तलबगार भी है। बिहार की तरह यूपी में बड़े महागठबंधन की आस कांग्रेस और सपा लगाये बैठी है लेकिन मायावती यह कहती रही है कि वे सिंद्धात और सीटों से समझौता नहीं करेंगे। जबकि सपाई और कांग्रेस यह मानती है कि मायवती अंतिम समय पर न केवल गठबंधन करेंगी बल्कि कम सीटों पर भी राजी हो जायेगी।
माना जा रहा है सपा और बसपा को संदेश देने के लिए और डा. बलिराम को उनकी हद समझाने के लिए ही मायावती ने लालगंज पर सीट पर प्रत्याशी की घोषणा की है। देखा जाय तो बलिराम पूर्वांचल में बसपा के कद्दावर नेताओं में एक है। एक दौर था जब बलिराम के कहने पर मायावती ने जिस राजाराम को अपने यहां रसोइयां रखा और उसे राज्यसभा भेजा वह उनके उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा था।
डा. बलिराम बसपा के संस्थापक सदस्यों में से है। उन्होंने बीएस-4 से काम शुरू किया और बसपा के अस्तित्व में आने के बाद उससे जुड़ गए। बीएचयू के छात्र रहे डा. बलिराम ने बसपा को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वर्ष 1996, 1999 व 2009 में वे लालगंज संसदीय सीट से सांसद भी चुने जा चुके है। उन्हें बसपा मुखिया मायावती का काफी करीबी माना जाता है। उनका टिकट काटकट दूसरे जिले के पूर्व मंत्री को लालगंज से बसपा का प्रत्याशी बनाना पार्टी के लोगों को भी गले नहीं उतर रहा है।
मंगलवार को पार्टी कार्यालय पर हुई बैठक में चीफ कोआर्डीनेटर डा. राम कुमार कुरील ने पूर्व मंत्री घूरा राम के नाम की घोषणा की। गौरतलब है कि मूलरूप से बलिया के रहने वाले धूरा राम वर्ष 1984 में बीएस-4 से जुडे़ थे। वर्ष 1985 में उनके यूवा बहुजन समाज पार्टी का बलिया का जिलाध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद वे वर्ष 1990 से वर्ष 1998 तक बसपा के जिलाध्यक्ष रहे। इसी बीच वर्ष 1993 में उन्हें रसड़ा विधानसभा से बसपा का टिकट मिला और वे विधायक चुन लिए गये। इसके बाद वर्ष 1996 में वे चुनाव हार गये लेकिन वर्ष 2002 में उन्हें दोबारा विधायक चुना गया। वर्ष 2007 के चुनाव में भी वे रसड़ा से विधायक चुने गये लेकिन वर्ष 2012 में पार्टी ने उन्हें टिकट ही नहीं दिया। यहीं नहीं वर्ष 1995 में धूरा राम को मायावती ने न केवल मंत्री बनाया था बल्कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, प्राविधिक शिक्षा, वैकल्पिक शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी दिये थे। वर्ष 2017 में विधानसभा टिकट काटने के बाद अब उन्हें आजमगढ़ जिले की लालगंज संसदीय सीट से प्रत्याशी बना दिया गया।
वैसे बलिराम और मायावती के बीच खटास की वजह निकाय चुनाव को माना जा रहा है। आजमगढ़ नगरपालिका सीट से पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष शीला श्रीवास्तव बसपा से अध्यक्ष पद के टिकट की प्रबल दावेदार थी। पूर्व में शीला और उनके पति स्व. गिरीश चंद श्रीवास्तव बसपा से अध्यक्ष रह चुके थे लेकिन डा. बलिराम के दबाव के कारण मायावती ने सुधीर सिंह पपलू को प्रत्याशी बनाया और शीला टिकट कटने के बाद न केवल निर्दल मैदान में उतरी बल्कि जीत हासिल करने में भी सफल रही। रहा सवाल सुधीर सिंह का तो वे तीसरे स्थान पर रहे। माना जा रहा है कि इसी बात की खुन्नस निकालने के लिए मायावती ने डा. बलिराम का टिकट काटा है।
इस मामले में घूरा राम का कहना है कि बहन जी ने जो विश्वास उनपर जताया है वे उसपर खरा उतरने का प्रयास करेंगे। टिकट कटने के बारे में जब पूर्व सांसद डा. बलिराम से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इस संबंध में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। वे लखनऊ में है। चुनाव किसे लड़ाना है यह मुखिया को तय करना है। मायावती और उनके बीच दूरी के सवाल पर वे चुप्पी साध गये।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो