बता दें कि उलेमा कौंसिल की कम से कम आजमगढ़ जिले में गहरी पैठ मानी जाती है। वर्ष 2009 के लोकसभा और 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने कुछ सीटों पर काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। वर्ष 2017 के चुनाव में उलेमा कौंसिल नहीं लड़ी थी बल्कि बसपा का समर्थन किया था जिसका फायदा बसपा को मिला था। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में उलेमा कौंसिल क्षेत्रीय दलों पीस पार्टी, आजाद समाज पार्टी सहित डेढ़ दर्जन दलों से गठबंधन कर मैदान में उतरी थी। माना जा रहा था कि कुछ सीटों पर इनका प्रदर्शन अच्छा होगा लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। पार्टी का कोई प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा पाया।
लालगंज में यूडीए गठबंधन से आजादा समाज पार्टी ने राजनाथ को मैदान में उतारा था लेकिन उन्हें सिर्फ 476 मत मिले। इसी तरह दीदारगंज सीट पर उलेमा कौंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना आमिर रशादी के पुत्र हुजैफा आमिर मैदान में उतरे थे लेकिन इन्हें सिर्फ 10068 वोट मिला। निजामाबाद में आजाद समाज पार्टी ने अख्तर अली को मैदान में उतारा था। उन्हें 709 वोट मिले। इसी तरह फूलपुर पवई में आजाद समाज पार्टी के अमित कुमार को मात्र 327 वोट मिला। इसी तरह आजमगढ़ विधानसभा सीट पर आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी ऋिषिकांत यादव को मात्र 640 वोेट मिले। वहीं सगड़ी में आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी अमीर चंद को मात्र 347 वोट मिला। वहीं मुबारकपुर में आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी कन्हैया को 356 वोट मिले।
यदि देखा जाय तो गठबंधन के सारे प्रत्याशी फिसड्डी साबित हुए है। हुजैफा आमिर को छोड़ दिया जाय तो बाकी प्रत्याशियों को नोटा से भी कम वोट मिला है। साफ है कि इस चुनाव में न तो उलेमा कौंसिल का जादू चला और ना ही चंदशेखर आजाद का ही जादू चला।