गौर करें तो सीएए, एनआरसी के विरोध के मुद्दे पर विपक्ष एकजुट था। चाहे वह कर्बला मैदान में सर्वदलीय धरना रहा हो या बिलरियागंज में एनआरसी सीएए के खिलाफ प्रदर्शन। जौहर अली पार्क में महिलाओं के प्रदर्शन का सभी ने समर्थन किया। पुलिस द्वारा किए गए लाठी चार्ज के बाद सपा से लेकर कांग्रेस तक प्रशासन के खिलाफ सड़क पर उतरी लेकिन जैसे ही प्रियंका गांधी का कार्यक्रम आजमगढ़ में लगा कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदल दी और यह दिखाने का प्रयास किया कि अल्पसंख्यकों की लड़ाई सिर्फ वहीं लड़ रही है।
कांग्रेस ने अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के जरिये सीधा टार्गेट सपा मुखिया और आजमगढ़ सांसद अखिलेश यादव को किया। पूरे शहर में अखिलेश यादव के लापता होने का पोस्टर लगा दिया गया और उन्हें हेलीकाप्टर वाला नेता बताया गया। इसके बाद सपा ने पलटवार किया तो कांग्रेस से वरिष्ठ नेता सचिन नायक से लगायत पूरी जिला कमेटी को अखिलेश के खिलाफ मैदान में उतार दिया।
बुधवार को प्रियंका गांधी बिलरियागंज पहुंची तो भीड़ और कार्यकर्ताओ ने उन्हें जोश से भर दिया। प्रियंका गांधी ने मुसलमानों को साधने के लिए कांग्रेस की धुर विरोधी पार्टी उलेमा कौंसिल के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना ताहिर मदनी जिसपर दंगे की साजिश का आरोप है उसे न केवल क्लीन चिट दिया बल्कि अंहिसावादी भी करार दे दिया। चुंकि मौलाना ही इस आंदोलन के अगुवा था और प्रियंका ने उन्हें क्लीन चिट देते हुए न्याय का वादा किया तो वहां का अल्पसंख्यक उनका मुरीद हो गया। खासतौर पर महिलाएं जिन्हें इस आंदोलन में पुलिस की लाठियां खानी पड़ी थी।
यहां एक चीज और खास दिखी कि पहली बार अल्पसंख्यकों में सपा और अखिलेश को लेकर गुस्सा था। कांग्रेस ने इसे अपने लिए मौके के रूप में देखा और सपा के इस बड़े वोट बैंक को पाले में करने के लिए खुलकर दाव खेला। अब कांग्रेस की नजर पूरे पूर्वांचल के मुस्लिम मतदाताओं पर हैं। यही वजह है कि प्रियंका के जाने के बाद भी कांग्रेसियों का सीधा टार्गेट सपा बनी हुई है। एक बात जो सबसे अधिक गौर करने वाली रही कि बिलरियागंज की कई महिलाआंे ने सपा के स्थानीय विधायक पर पुलिस के साथ मिलकर उत्पीड़न कराने का आरोप लगाया। जो कहीं न कहीं सपा को असहज कर रही है।
कांग्रेस किसी भी हालत में इस मौके को भुनाना चाहती है। कारण कि पार्टी को एहसास है कि उसने यूपी में तब तक राज किया जब तक दलित और मुस्लिम उसके साथ खड़ा था। बीजेपी हिंदू मतों का धु्रवीकरण करने में सफल है जिसे तोड़ना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है लेकिन एनआरसी जैसे मुद्दे प रवह सपा के वोट बैंक मुस्लिम को अपने पाले में कर सकती है। कांग्रेस अब आगे इसी रणनीति पर काम करती नजर आ सकती है। पार्टी सूत्रों की मानें तो नेतृत्व ने अपने कार्यकर्ताओं को साफ कर दिया है कि जितना हो सके उतना सपा पर हमले करे। जबकि यह वही कांग्रेस है जो पिछला विधानसभा चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ी थी लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद से उसे एहसास हो गया है कि उसको सर्वाधिक नुकसान सपा और बसपा से ही हुआ है।
आंकड़े भी इसके गवाह है। सपा के गठन के पहले 1991 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 413 सीटों पर लड़कर 17.59 प्रतिशत वोट हासिल किया था। जबकि जनता दल को 21 प्रतिशत और बसपा को मात्र 10. प्रतिशत वोट मिला था। वर्ष 1992 में मुलायम सिंह ने सपा का गठन किया। इसके बाद से ही कांग्रेस के बुरे दिन शुरू हो गये। 1993 के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर गिरकर 15 प्रतिशत हो गया। इसके बाद वर्ष 2002 के चुनाव में कांग्रेस 8.99 प्रतिशत वोट ही हासिल कर पाई जबकि सपा का मत प्रतिशत बढ़कर 26.27 फीसदी और बसपा का 23.19 फीसदी पहुंच गया। तब से लेकर आज तक कांग्रेस 10 फीसदी वोट शेयर के आसपास ही पड़ी हुई है। पूर्वांचल जो कभी कांग्रेस का गढ़ कहा जाता था आज उसके प्रत्याशियों के लिए जमानत बचानी मुश्किल है। इसलिए कांग्रेस अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर हुई है।
कहीं न कहीं उसे एससाह हो चुका है कि सांप्रदायिकता को मुद्दा बनाकर वह सत्ता में नहीं आ सकती और ना ही राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों पर बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकती है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी पर चलाया गया भ्रष्टाचार का वार भी फेल रहा है। इसलिए पार्टी ने अपने पुराने वोट बैंक को दुबारा हासिल करने के लिए अब साफ टार्गेट सपा को चुन लिया है। आने वाले दिनों में दोनों दल एक दूसरे के खिलाफ और मुकर हो सकते है जैसा संकेत अभी से मिलने लगा है।
By Ran Vijay Singh