गौर करें तो आजमगढ़ सीट पर वर्ष 1952 से लेकर अब तक इस तरह का उत्साह मतदाताओं में देखने को नहीं मिला था। वर्ष 1977 में यहां सर्वाधिक 57.22 प्रतिशत वोटिंग हुई थी लेकिन वर्ष 2019 में सर्वाधिक 57.55 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया है। यहां 17,85,624 मतदाताओं में 10,24,841 ने वोटिग की है। इसमें 9,69,949 पुरुष मतदाताओं ने 5,23,755 ने वोटिग किया। जबकि 8,15,606 महिला मतदाताओं में 5,01,086 मतदान केंद्र तक पहुंची। तीन विधानसभा में वोटिंग के मामले में महिलाएं पुरूषों से आगे रही है। जबकि इस बार रमजान था माना जा रहा था कि धूप के कारण मतदान में कमी आयेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसका प्रमुख कारण दलित, यादव और मुस्लिम का गठबंधन तथा अन्य जाति के मतदाताओं का भाजपा के प्रति ध्रुवीकरण माना जा रहा है।
वैसे राजनीतिक दलों की राय इससे अलग है। सपा दावा कर रही है कि मुस्लिम यादव, दलित शत प्रतिशत उनके साथ तो रहा ही जबकि कोईरी, चौहान, पासी, राजभर आदि जाति के लोगों ने भी अखिलेश यादव के पक्ष में खुलकर मतदान किया है। खासतौर पर राजभर तो 75 प्रतिशत उनके साथ गया है। इसलिए वे इस सीट को 3 लाख के अंतर से जीत रहे हैं।
वहीं भाजपा का दावा है कि ओमप्रकाश राजभर के साथ छोड़ने का कोई असर नहीं हुआ है। 80 प्रतिशत तक राजभर उनके साथ गया है। अन्य अति पिछड़ी जातियां और सवर्ण शत प्रतिशत उनके पक्ष में मतदान किया है। साथ ही दिनेश लाल यादव निरहुआ ने चार से पांच प्रतिशत यादव, 10 प्रतिशत दलित मतों में सेध लगाई है। यही नहीं दस प्रतिशत तक मुस्लिम रमजान के कारण मतदान नहीं किये है। जो उनके पक्ष में गया है। इसके अलावा तीन तलाक के मुद्दे पर तीन से चार प्रतिशत मुस्लिम महिलाएं उनके साथ रही हैं। इसलिए वे आसानी से 30 से 35 हजार के अंतर से सीट जीत जाएंगे।
राजनीति के जानकार कहते हैं कि अगर सपा के लोगों का दावा सच है तो अखिलेश यादव 80 हजार से एक लाख के अंतर से चुनाव जीत जाएंगे और भाजपाइयों का दावा सही है तो दिनेश लाल यादव निरहुआ पांस से दस हजार के अंतर से जीत सकते हैं लेकिन कोई इस स्थित में नहीं हैं जो दावे से कह सके कि फला प्रत्याशी जीत रहा है। मतदान के बाद से ही दोनों प्रमुख दल यह हिसाब लगाने में जुटे हैं कि कौन सा बूथ उन्हे बढ़त दिलाएगा और कौन सा उनके लिए कमजोर कड़ी साबित होगा। मतदाता भी अपनी समर्थक पार्टी के लिए यह गुण गणित कर रहा है।