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आजमगढ़

आखिर यूपी में दलित महिलाएं ही क्यों बन रही निशाना, क्या कर रही योगी की पुलिस

ताबड़तोड़ घटनाओं से जिले में लगातार बढ़ रहा है तनाव

आजमगढ़May 11, 2018 / 03:29 pm

ज्योति मिनी

दलित महिला

दलित महिला

आजमगढ़. यूपी में कानून व्यवस्था और महिला उत्पीड़न रोकने को लेकर सरकार लाख दावे करे, लेकिन हकीकत में पुलिस अपराध रोकने में पूरी तरह नाकाम है। खासतौर पर दलित और महिलाओं पर होने वाला अपराध। कुछ ममालों में तो पुलिस की भी कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहा है। मसलन मुबारकपुर की घटना। यहां दलित के साथ गैंगरेप होता है और पुलिस पीड़ित को मेडिकल के लिए चौबीस घंटे बाद अस्पताल भेजती है। अहम बात है कि, दलितों के हो रहे उत्पीड़न के ज्यादातर मामलों में वर्ग विशेष के लोग शामिल हैं।
बता दें कि, मुबारकपुर थाना क्षेत्र के एक गांव की दलित बस्ती की रहने वाली 16 वर्षीय किशोरी गुरुवार की भोर में खेत में जाने के लिए निकली थी। अभी वह घर से थोड़े दूर पहुंची थी कि वहां पड़ोसी गांव का मो. तौफीक पुत्र इकबाल, मो. शाहिद पुत्र मुस्तकीम और नजरे आलम पुत्र जैनू पहुंच गए। उन्होंने किशोरी का मुंह बंद कर अपने साथ उठा ले गए। तीनों ने उसके साथ रेप किया और बेहोशी की हालत में छोड़कर फरार हो गए। पीड़ित थाने पहुंची तो पुलिस उसे पूरे दिन और रात थाने में बैठाए रही। जबकि उसको मेडिकल कराने के लिए अस्पताल भेजना चाहिए था। वैसे तहरीर के आधार पर पुलिस मामला पंजीकृत कर एक आरोपी को गिरफ्तार जरूर कर लिया। पीड़ित को आज जिला महिला अस्पताल भेजा गया।
इसी तरह निजामाबाद थाना क्षेत्र के फरिहां गांव की दलित बस्ती में सोमवार की देर शाम अल्पसंख्यक समुदाय का युवक शफी पुत्र रफीक दलित के घर में घुस गया था। उसने घर में मौजूद 18 वर्षीय युवती के साथ छेड़ाखानी की। युवती ने विरोध किया तो युवक ने उसे मारापीटा और उसके शरीर पर मिट्टी का तेल उड़ेलकर आग लगा दी। गंभीर रूप से झुलसी युवती का उपचार वाराणसी में चल रहा हैं। वहीं आरोपी युवक मोहम्मद शफी पुत्र मोहम्मद रफीक को जेल भेज दिया गया है। इसी तरह पिछले महीने सरायमीर में 28 अप्रैल को पैगंबर पर अभद्र टिप्पणी के आरोपी पर एनएसए लगाने की मांग को लेकर किए गए उपद्रव में ठेला खोमचा लगाने वाले दलितों को खुलेआम निशाना बनाया गया।
इसके अलावा पिछले दो माह में कई दलित महिलाओं को निशाना बनाया गया है। महिलाओं के साथ छेड़खानी और दुष्कर्म की घटनाओं में तो मानों बाढ़ आ गयी है लेकिन पुलिस है कि, पहले ममाले को दबाने का प्रयास करती है जब बात बढ़ जाती है तब कार्रवाई करती है।
उदाहरण के तौर पर बुधवार की रात रोडवेज परिचालक द्वारा चलती बस में नाबालिग यात्री के साथ की गई छेड़खानी के मामले को ही लीजिए। स्थानीय लोगों ने परिचालक को पकड़कर पुलिस के हवाले किया, लेकिन पुलिस ने छेड़खानी को अभद्र व्यवहार में बदलकर 151 में चालान में कर दिया। अब सामाजिक संगठनों ने पुलिस कार्रवाई का विरोध शुरू किया तो पुलिस कह रही है कि, मामले की जांच के बाद तममीम कर दिया जाएगा। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुलिस और सरकार की मंशा में कितना फर्क है।
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