बता दें कि दारा सिंह चौहान एक ऐसे नेता हैं जो हमेशा सत्ता के साथ चलने में विश्वास रखते है। पूर्वांचल में बाहुबली रमाकांत यादव के बाद दारा सिंह चौहान ही ऐसे नेता है जो बसपा, सपा, कांग्रेस और भाजपा का सफर तय कर चुके है। इस समय दोनों ही नेता समाजवादी पार्टी में है। खास बात यह भी है कि दोनों कांग्रेस छोड़कर जिस भी दल में गए वहां सांसद या विधायक बनने में सफल रहे। दारा सिंह तो वर्ष 2017 में कैबिनेट मंत्री भी बन गए। छह दिसंबर 2021 तक दारा सिंह बीजेपी के साथ थे। उन्होंने सगड़ी में मुख्यमंत्री के साथ मंच शेयर किया और अखिलेश यादव पर हमले भी किए लेकिन जनवरी 2022 में वे बीजेपी छोड़कर सपा में शामिल हो गए।
इस बात की जोरदार चर्चा है कि आखिर उन्होंने बीजेपी छोड़ी क्यों?। दारा सिंह के करीबी लोगों और बीजेपी सूत्रों पर विश्वास करें तो दारा सिंह का मधुबन में खुद के लिए खतरा महसूस हो रहा था। उन्हें डर था कि वे चुनाव हार जाएंगे। कारण कि मंत्री बनने के बाद दारा सिंह क्षेत्र में कम रहे। वे चाहते थे कि बीजेपी उन्हें चौहान बाहुल्य सीट घोसी से टिकट दे लेकिन बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं थी। बीजेपी घोसी से राज्यपाल फागू चौहान के पुत्र को चुनाव लड़ाना चाहती थी। फागू इसी शर्त पर सपा में शामिल हुए कि उन्हें घोसी से टिकट मिलेगा।
अब दारा की दावेदारी से सपा में घमासान मच गई है। घोसी से वर्ष 2017 में फागू चौहान चुनाव जीते थे। जब उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया तो सीट खाली होने पर उपचुनाव हुआ। जिसमें बीजेपी ने विजय राजभर को मैदान में उतारा। सपा समर्थित के रूप में सुधाकर सिंह मैदान में उतरे। सुधाकर सिंह मामूली अंतर से चुनाव हार गए। वर्ष 2022 में सुधाकर सिंह सपा से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।
वहीं अखिलेश यादव के करीबी राजीव राय भी यहां से लड़ना चाहते है। ऐसे में अगर सपा दारा सिंह को घोसी से मैदान में उतारती है तो सुधाकर सिंह और राजीव राय नाराज हो सकते हैं। सुधाकर सिंह का क्षेत्र में अपना वोट बैंक है। सुधाकर की नाराजगी सपा के लिए घातक हो सकती है। कारण कि सपा पिछले चुनाव में भीतरघात के कारण कई सीट गवां चुकी है। ऐसे में दारा की राह मुश्किल होती दिख रही है।