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यूपी में अब डॉक्टर हुए लामबंद, कहा- सरकार की दोहरी नीति ने चिकित्सकों को बनाया बंधुआ

locationआजमगढ़Published: Sep 24, 2018 08:44:40 pm

Submitted by:

Akhilesh Tripathi

चिकित्सकों ने डीएम से मुलाकात कर सौपा सीएम के नाम ज्ञापन

Doctors protest against Up Government

डॉक्टरों की सरकार से नाराजगी

आजमगढ़. प्रान्तीय चिकित्सा सेवा संघ उप्र केन्द्रीय कार्यकारिणी के आह्वान पर सोमवार को सांकेतिक आंदोलन के क्रम में जिला इकाई ने जिलाधिकारी से मुलाकात कर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा गया। चिकित्सकों ने सरकार से स्वास्थ्य व्यवस्था की बेहतरी और चिकित्सकों के हित को देखते हुए समस्याओं के समाधान की मांग की। इस दौरान सरकार पर चिकित्सा जैसे महत्वपूर्ण विभाग की अनदेखी का आरोप लगाया गया। इसके पूर्व चिकित्सक डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा के पास इकठ्ठे होकर आन्दोलन की रूप रेखा एवं संघ के मांगों के प्रमुख बिन्दुओं पर विस्तृत चर्चा की।
चिकित्सकों ने एक स्वर से कहा कि राज्य की 22 करोड़़ से अधिक जनसंख्या की दिन रात, सेवा करने वाले राजकीय चिकित्सकों के संवर्ग को अपमान, प्रताड़ना और गुलामी का शिकार बना दिया गया है। कर्तव्यनिष्ठा, कठोर परिश्रम और जीवन भर में अर्जित योग्यता के लिये प्रोत्साहन देने के बजाय, संवर्ग के चिकित्सकों के मौलिक अधिकार तक को दरकिनार कर दिया गया है। यहां तक कि सेवा में योगदान के समय-प्रवृत्त, अधिवर्शता-आयु पर सेवा निवृत्त होने जैसे मौलिक अधिकार और स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति के अधिकारों से भी राज्य सरकार ने उन्हे वंचित कर दिया है।
ऐसे में जहां दशको से सेवारत चिकित्सक हताश, निराश और कुंठित हैं, वहीं नये चिकित्सक नियमित राजकीय सेवा में आने से डर गये हैं। उन्हे नियमित राजकीय सेवा में लाने में सरकार के सारे प्रयास विफल हो गये है। इसके चलते प्रान्तीय चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा संवर्ग के मृत प्रायः होने का खतरा बहुत बढ़ गया है, जो लोक-कल्याणकारी राज्य के लिये सबसे बड़ी चिन्ता का विषय होना चाहिए और इसे रोकने के उपाय करना सभी की जिम्मेदारी है।
उन्होंने कहा कि गैर तकनीकी आधारों पर आधारित नीतियों के चलते पटरी से उतरी चिकित्सा सेवाओं की दुर्व्यवस्था के लिये चिकित्सकों एवं चिकित्सा कर्मियों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है जबकि वास्तविकता यह है कि विभाग में दोहरी-तीहरी अव्यवहारिक व मनमानी व्यवस्थाओं के चलते चिकित्सा सेवायें, अराजकता और दिशाहिनता की तरफ बढ़ रही है। राज्य में सरकार की घोषित प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये आवश्यकता के सापेक्ष स्थाई ढाचें में एक चौथाई से भी कम चिकित्सक और चिकित्साकर्मी उपलब्ध हैं।
अस्सी के दशक में सरकार द्वारा स्वयं निर्धारित किये गये जन स्वास्थ्य के मानक, आज 2018 तक भी प्राप्त नही किये जा सके है। इस वास्तविकता को न केवल दबाया व छुपाया जा रहा है अपितु इस बावत आम जनता और न्यायालय तक को अंधेरे में रखा जा रहा है। चिकित्सकों को गुलाम बनाकर छोड़ दिया जाना किसी हालत में सहन नही किया जा सकता है।
चिकित्सकों ने कहा कि दोहरी व्यवस्था के तहत चिकित्सा इकाईयों में रूपये ढाई लाख तक, प्रतिमाह वेतन पर चिकित्सक बिडिंग के माध्यम से मात्र आठ घण्टे के लिये नियुक्त किये जा रहे हैं और उनसे मेडिकोलीगल, पोस्ट-मार्टम इत्यादि कार्य नही लिये जाने का नियम भी प्रख्यापित किया गया है, जब कि लोक सेवा आयोग से चयनित नवनियुक्त चिकित्साधिकारियों को मात्र 60 से 70 हजार प्रतिमाह वेतन प्रदान किया जाता है और उनसे दिन रात मेडिकोलीगल कार्य सहित सभी राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों के सम्पादन में कार्य लिये जाते है। यदि राज्य की चिकित्सा सेवायें इसी प्रकार दोहरी व्यवस्था के तहत चलाया जाना जनहित में है तो सभी सेवारत-सदस्य चिकित्सक, सेवा मुक्त होकर उक्त संविदा नियमों के तहत पारितोशित स्वरूप रूपये ढाई लाख प्रतिमाह के वेतन पर कार्य करने के लिये तैयार है।
ज्ञापन सौपने में डॉ. विनय कुमार सिंह यादव अध्यक्ष, डॉ. राजनाथ सचिव, डॉ. पूनम कुमारी उपाध्यक्ष, डॉ. देवेन्द्र सिंह वित्त सचिव, , डॉ. वाईके राय, , डॉ.ओम प्रकाश, डॉ. राज कुमार, डॉ. पीबी प्रसाद, डॉ. आरके पासवान, डॉ. अशोक कुमार, डॉ. अरविन्द चौधरी, डॉ. प्रवीन चौधरी, डॉ. आरएस मौर्या, डॉ. कुशल नन्दन, डॉ. निलेष कुमार, डॉ. बृजेश कुमार, डॉ. शिवा जी सिंह, डॉ. अलेन्द्र कुमार, डॉ. सौकत अली, डॉ. अंकित अग्रवाल, डॉ. अज़जी, डॉ. रईस आदि शामिल थे।
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