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‘विदाई‘ नाटक के मंचन से समूहन भ्राम्यमान नाट्य समारोह का हुआ आगाज

locationआजमगढ़Published: Jan 21, 2018 11:27:06 pm

Submitted by:

Ashish Shukla

राजस्थानी गीत ‘हे जी रे म्हारों हेडो‘ व ‘केसरिया बालम पधारो म्हारे देश‘ पर लोग खूब झूमे

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आजमगढ़. समूहन कला संस्थान द्वारा आयोजित ‘समूहन भ्राम्यमान नाट्य समारोह’ की आजमगढ़ श्रृंखला की पहली संध्या का रविवार को राहुल प्रेक्षागृह के मंच पर शानदार आगाज हुआ। मुख्य अतिथि श्रीकान्त तिवारी, मुख्य चिकित्साधिकारी एवं विशिष्ट अतिथि डॉ. ए.के. सिंह एवं डॉ. निर्मल श्रीवास्तव ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलन कर शुभारम्भ किया। नाटक के मंचन के पूर्व एम्बियांस प्रस्तुति के अन्तर्गत राजस्थानी संगीत का प्रस्तुतिकरण साधना सोनकर एवं साथियों ने किया, जिसका दर्शकों ने खूब आनन्द लिया। राजस्थानी गीत ‘हे जी रे म्हारों हेडो‘ और ‘केसरिया बालम पधारों म्हारे देश‘ पर लोग झूम उठे। स्वागत समिति के सदस्य अशोक कुमार अग्रवाल, डॉ. दीपक साहा, प्रवीण कुमार सिंह, अशोक कुमार शुक्ला, पुष्पा श्रीवास्तव, डा. अलका सिंह, दिनेश सैनी ने आगत अतिथियों का पुष्प गुच्छ देकर स्वागत किया।
समारोह की इस प्रथम संध्या पर राजकुमार शाह के सशक्त निर्देशन में नाटक ‘‘विदाई’’ का मंचन हुआ जो गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की मूल कहानी के आधार में रख कर रची गई है, यह एक सर्वकालिक समस्या पर आधारित है। रचनागत स्तर पर इसकी अभिव्यक्ति प्रत्येक काल खण्ड में एक सी ही गहराई के साथ अभिव्यक्त होती रही है। विदाई शीर्षक के अर्थ बडे़ गूढ़ हैं। गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने निरूपमा की विदाई के साथ समाज में चली आ रही प्राचीन परम्परा को निभाया जरूर है, किन्तु विवाह मण्डप में दहेज के लिए अडे़ अपने बाप से अनुराग का विद्रोह प्रतीकात्मक रूप में युवाओं से इस कुरीति के खिलाफ उठकर खड़े होने का संदेश भी देती है। संभवतः गुरूदेव ने अपनी दिव्य दृष्टि से जान लिया था कि केवल युवा सोच ही इन कुरीतियों के खिलाफ अचूक अस्त्र है। गुरूदेव की कहानी के अलावा यथार्थ जीवन की एक कथा भी मंच पर साथ-साथ चल रही है। ये गुरूदेव की कहानी को जी रहे पात्रों के जीवन की वास्तविकता है। दोनों कहानियाँ समान रूप से एक मोड़ पर आकर ठहर सी जाती हैं। हमें झकझोर कर जगाने का प्रयास करती हैं और अपने समाधान के लिए दर्शकों से आग्रह करती हैं। परम्पराओं के नाम पर दहेज रूपी दानव कब तक हमारे समाज को छलता रहेगा। मंच पर नवीन चन्द्रा ने रामसुंदर की और अर्पिता मिश्रा ने लीला की भूमिका को जीवंत कर दिया। शिवेन्द्र राय ने रायबहादुर, अरित्रा सिंह ने चंचला, दिव्या सिंह ने निरूपमा, शुभो घोष ने किशोर की भूमिका में प्रभावित किया। अचला मौर्या, नेहा कुमारी, अनुराधा अग्रवाल, मधु ,प्रतीक शंकर, रजत सिंह, आकाश सिंह, शौर्य श्रीवास्तव, अभय आनन्द सिंह, शनि , विवेक वर्मा, आशीष मौर्या ने सराहनीय अभिनय किया। उमेश भाटिया ने गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की भूमिका को जीवंत कर दिया। नाटक की मूल प्रेरणा कथा गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की है जिसका कथा विस्तार एवं नाट्य अनुकूलन राजकुमार शाह एवं संतोष कुमार ने किया। संवाद एंव गीत संतोष कुमार एवं कविता नीलिमा शर्मा ने लिखे है। संगीत एवं साउण्ड डिजाईन अर्जुन टंडन और प्रवीण पाण्डेय, प्रकाश संयोजन टोनी सिंह रूपसज्जा कुतुब कमाल, दीपक मंच प्रबंधक शुभो घोष और वस्त्र विन्यास अर्पिता मिश्रा का प्रभावशाली रहा। प्रस्तुति समूहन कला संस्थान की थी जिसका कॉन्सेप्ट, प्रस्तुति अभिकल्पना एवं निर्देशन में राजकुमार शाह ने संवेदनशील प्रयोग से लोगो को झकझोर कर रख दिया। कहानियाँ अतीत की प्रेरणाएं हैं और भविष्य का मार्गदर्शन। गुरूदेव की कहानी प्रेरणा बनती है कनक के वास्तविक जिंदगी के समाधान की। इस रूप में यह मंचन सिर्फ अनुत्तरित सवालों के साथ दर्शकों को नहीं विदा नहीं करती बल्कि समाधान की उजास भी हाथों में थमाती है। कहानी समाज की उन बुराईयों की मांग के साथ खत्म होती है, जिनके साथ हमें सभ्य होने का नाटक नहीं करना चाहिए। कहानी का वास्तविक अंत तो तब होगा जब इस कहानी से प्रेरणा लेकर समाज में दूसरी और भी कनक दहेज के खिलाफ शादी से इंकार कर दें। समारोह की यह संध्या अत्यंत सफल रही। कार्यक्रम का संचालन संजीव पाण्डेय ने किया।
Input By : Ranvijay Singh

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