बता दें कि चुनाव कोई भी हो लेकिन पूर्वांचल में पिछड़ी जातियां हमेंशा से किंग मेकर साबित हुई है। अति पिछड़े और अति दलित जिसके साथ खड़े होते हैं उसके हाथ में सत्ता की चाभी होती है। वर्ष 2014 के चुनाव से पूर्वांचल के अति पिछड़े और अति दलित भाजपा के साथ लामबंद हैं। यहीं वजह है कि भाजपा वर्ष 2014 का लोकसभा और वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव बड़े अंतर से जीतने में सफल रही थी। वर्ष 2019 में सपा और बसपा के गठबंधन के बाद भी बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी।
अब 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारी चल रही है। बसपा ने साफ कर दिया है कि वह किसी भी दल से गठबंधन नहीं करेगी। वहीं कांग्रेस ने 40 प्रतिशत महिलाओं पर दाव चला है। बीजेपी युवाओं को पक्ष में करने के लिए एक के बाद एक दाव चल रही है। पिछले चुनाव में बुरी तरह मात खाने वाली समाजवादी पार्टी हर कदम फूंककर रख रही है। माना जा रहा था कि इस चुनाव सपा और प्रसपा का गठबंधन हो सकता है लेकिन अखिलेश यादव ने पूर्वांचल में बीजेपी की गणित को बिगाड़ने के लिए बड़ा दाव चल दिया है। सुभासपा और सपा के गठबंधन से बीजेपी की चुनावी रणनीति पर असर पड़ना तय माना जा रहा है लेकिन भाजपा नेता इसे सिरे से खारिज कर रहे हैं।
भाजपा के वरिष्ठ नेता और पंचायत प्रकोष्ठ के क्षेत्रीय संयोजक रमाकांत मिश्र का कहना है कि वर्ष 2008 के उपचुनाव में सपा संरक्षक मुलायम सिंह ने सियासी लाभ के लिए ओम प्रकाश राजभर से हाथ मिलाए थे लेकिन परिणाम क्या रहा। सपा प्रत्याशी बलराम यादव तीसरे स्थान पर पहुंच गए थे। वहीं बसपा के अकबर अहमद डंपी ने जीत हासिल की थी। उस समय बीजेपी दूसरे स्थान पर थी। रमाकांत का दावा है कि इस गठबंधन का चुनाव पर कोई असर नहीं होने वाला है। स्वार्थ और सत्ता के लिए किसी भी तरह का समझौता करने के लिए तैयार लोगों को मतदाता पहचान चुका है।