‘गजरोÓ पुस्तक का विमोचन
जयपुरPublished: Nov 30, 2015 11:35:00 am
प्रज्ञा परिवृत,बीकानेर की ओर से रविवार को स्थानीय नरेन्द्रसिंह ऑडिटोरियम
सभागार में राजस्थानी साहित्य के सुनहरे हस्ताक्षर वरिष्ठ साहित्यकार
शिवराज छंगाणी की प्रकाशित काव्यकृति ‘गजरोÓ का विमोचन समारोह आयोजित किया
गया। इस काव्य कृति ‘गजरोÓ का विमोचन कवि-चिंतक डॉ. नंदकिशोर आचार्य,
साहित्यकार मालचंद तिवाड़ी, लोककला मर्मज्ञ डॉ. श्रीलाल मोहता, प्रकाशक
दिनेश रंगा ने किया।
प्रज्ञा परिवृत,बीकानेर की ओर से रविवार को स्थानीय नरेन्द्रसिंह ऑडिटोरियम सभागार में राजस्थानी साहित्य के सुनहरे हस्ताक्षर वरिष्ठ साहित्यकार शिवराज छंगाणी की प्रकाशित काव्यकृति ‘गजरोÓ का विमोचन समारोह आयोजित किया गया।
इस काव्य कृति ‘गजरोÓ का विमोचन कवि-चिंतक डॉ. नंदकिशोर आचार्य, साहित्यकार मालचंद तिवाड़ी, लोककला मर्मज्ञ डॉ. श्रीलाल मोहता, प्रकाशक दिनेश रंगा ने किया।
इसी अवसर पर प्रज्ञा परिवृत की ओर से अतिथियों का माल्यार्पण एवं पुष्पगुच्छ भेंट कर स्वागत किया गया।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए कवि डॉ.नन्दकिशोर आचार्य ने कहा कि काव्य की गीतातम्कता काव्य को आत्मपरक बनाती है।
प्राय: जब हम कोई गीत-कविता सुनते हैं तो हम उसके बहाव में, उसकी तन्मयता में डूब से जाते हैं और उस तन्मयता में हम उसके बहुत से मजबूत पक्षों और कुछ यथार्थताओं को भूल जाते हैं या कहें कि अभिव्यक्त नहीं कर पाते।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्यकार मालचंद तिवाड़ी थे।
इस अवसर पर अनावरित कृति के लेखक साहित्यकार शिवराज छंगाणी ने अपनी काव्य या़त्रा के अनुभवों को सांझा करते हुए श्रोताओं के मान पर अपनी सद्य-प्रकाशित कृति ‘गजरोÓ में से चुनिंदा गीत – अरै कोई नाचे गावे रै, आज पूनम री रात, रसीली बात, रूप रंग कुण रचावै रे,,,सिंझ्या सूं भर मांग , नूंवो कर सांग, कै बैरण कुण मुळकावै रै…..को अपनी जानी-पहचानी शैली में गाकर श्रोताओं को मोहित कर खूब दाद बटोरी।
कार्यक्रम में डॉ.नमामीशंकर आचार्य, डॉ.ब्रजरतन जोशी, विद्याशंकर आचार्य शामिल थे।