उप निदेशक शोध/ प्रभारी कृषि रक्षा थान सिंह गौतम का कहना है कि वर्तमान समय में धान की फसल में झुलसा रोग एवं विलम्ब से रोपी गयी विशेष कर संकर (हाइब्रिड) प्रजातियों के अलावा जल भराव वाले खेतों में कंडुआ रोग लगने की संभावना बढ़ गयी है। किसान अपनी फसलों की निगरानी करते रहें, अति आवश्यक होने पर ही रसायनों का प्रयोग करें। उन्होने बताया कि झुलसा रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियाँ नोक एवं किनारे से सूखने लगती है। सूखे हुए किनारे अनियमित एवं टेढ़े-मेढ़े हो जाते है तथा पत्तियों के नसों में भी कत्थई रंग की धारियाँ बन जाती हैं।
झुलसा रोग का उपचार
झुलसा रोग के उपचार के लिए प्रभावित क्षेत्र से तत्काल पानी निकाल दें। यूरिया की टॉप ड्रेसिंग रोक दें तथा कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 500 ग्राम मात्रा के साथ स्ट्रेप्टोसाइक्लिन की 15 ग्राम मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
कंडुआ रोग
कंडुआ रोग के लक्षण बाली निकलने के बाद प्रकट होते हैं। बालियों के दानें शुरूआत में गहरे पीले पड़ते हैं, बाद में फूलकर काले रंग के हो जाते हैं। यह एक बीज जनित बीमारी है। इससे बचाव का सबसे अच्छा तरीका है कि बोआई से पूर्व कार्बेंडाजिम की 2 ग्राम या ट्राइकोडर्मा की 5 ग्राम मात्रा से प्रति किग्रा बीज का शोधन करने के उपरान्त बोआई करें।
कंडुआ लगने पर क्या करें
उन्होंने किसानों को सलाह दी कि यदि खेत में इस बीमारी से ग्रसित पौधें दिखाई दें तो तुरंत प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें व खेत से पानी निकाल दें। साथ ही प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी की 200 मिली या कार्बेंडाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 200 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। आवश्यक होने पर 8-10 दिन बाद दोबारा छिड़काव करना चाहिए।
इस नंबर पर करें संपर्क
फसल सुरक्षा की अधिक जानकारी अथवा अन्य किसी समस्या के समाधान हेतु किसान अपने विकास खंड स्थित कृषि रक्षा इकाई के प्रभारी या उप कृषि निदेशक (कृषि रक्षा) कार्यालय के तकनीकी सहायक अनिल कुमार से मोबाइल नंबर-9691579152 पर संपर्क कर सकते हैं।