बता दें कि आजमगढ़ जिले में फूलपुर तहसील क्षेत्र के सैकड़ों गांव के किसान भरुआ लाल मिर्चा की खेती करते हैं। जिले में 1200 हेक्टेयर में भरुवा मिर्चा की खेती होती है। लाल मिर्चा ने यहां के किसानों को नई पहचान दी है। अच्छा मुनाफा होने के कारण किसान धान-गेहूं की खेती के बजाय मिर्चा की खेती पर जोर देते हैं। यहां की मिट्टी उर्वरा होने के कारण किसान कई प्रांतों की जरूरतें पूरी करते थे। ट्रक से लाल मिर्च कोलकाता तक पहुंचाई जाता था। इसके लिए फूलपुर कस्बे में मिर्चा मंडी भी स्थापित की गयी है लेकिन यहां सुविधाओं का आभाव है।
स्थानीय किसान रामजीत सिंह, सतेंद्र सिंह, राजपति यादव की मानें तो पहले 30 से 40 हेक्टेयर में भरुवा मिर्चा की खेती होती थी प्रोत्साहन न मिलने के कारण लाल मिर्चा की खेती 1200 हेक्टेयर में सिमट कर रह गई है। सरकार लाल मिर्चा की खेती को रोजगार से जोड़ने के इरादे से इसे ओडीओपी में शामिल करेगी तो पलायन रुकेगा। वर्तमान में दो हजार किसान लाल मिर्चा की खेती से जुड़े हैं। कारण कि इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए सबसे बड़ी जरूरत बाजार की है जो यहां उपलब्ध नहीं है। क्षेत्र में एक ही मंडी होने के कारण किसानों का शोषण होता है जिससे उनकी रूचि घटी है।
अगर मशरूम के साथ इसे ओडीओपी योजना में शामिल किया जाता है और किसानों को प्रशिक्षित कर उन्हें बेहतर बाजार उपलब्ध कराया जाता है तो यह रोजगार का बेहतर माध्यम बनेगा। कारण कि आज तमाम किसान जिले में पारपंरिक खेती से हटकर मशरूम की खेती कर रहे हैं। कृषि विज्ञान केंद्र कोटवा की देखरेख में हो रही मशरूम की खेती से किसानों को काफी लाभ भी हो रहा है। वर्तमान में 4054 वर्ग किमी में फैले जिले में कृषि योग्य भूमि 2.80 लाख हेक्टेयर है। इसमें गेहूं की 2,33,726 हेक्टेयर, धान 2,46,600 हेक्टेयर भूमि में खेती है। शेष भूमि में सरसों, अलसी, चना, मटर, गन्ना आदि की खेती की जाती है। पारंपरिक खेती में ज्यादा फायदा न होने से किसान खेती छोड़कर पलायन कर रही है।
कृषि वैज्ञानिक डा. आरपी सिंह का कहना है कि मशरूम उत्पादन से किसानों को रोजगार का नया अवसर प्राप्त हुआ है। इससे पलायन भी रुका है। ओडीओपी में शामिल होने पर ऋण, तकनीक राह आसान होगी तो किसान खेती कर आत्मनिर्भर बन सकेंगे। अगर खेती को बढ़ावा दिया जाता है तो पलायन भी रूकेगा। साथ ही अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी।