दरअसल, आजमगढ़ की तस्वीर लगभग बदल चुकी है। एक दशक में यहां कई काम हुए और अब भी चल रहे हैं। ग्रामीण इलाकों की सडक़ें शहर को फेल करती हैं। पूर्वांचल के कुछ प्रमुख शहरों को छोड़ दें तो उसके बाद सबसे विकसित जिलों में आजमगढ़ ही आता है। यहां मेडिकल कॉलेज से लेकर तमाम सुविधाएं हैं। जेल भी अपने नए भवन में शिफ्ट हो चुका है। रोडवेज बस अड्डा अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त है।
चुनावी मौसम में चुनाव पर चर्चा तो बहुत हो रही है, लेकिन जिला झंडे-बैनर और पोस्टर से बहुत दूर है। सपा कार्यकर्ता जरूर नीली टोपी में दिख जाते हैं। दरअसल, आजमगढ़ भाजपा और सपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है। कारण साफ है सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव पिछला चुनाव यहीं से जीते थे, लेकिन जीत का अंतर उनके कद के अनुरूप नहीं था। जिन्होंने मुलायम को चुनौती दी थी अब वे कांग्रेस का हाथ पकडक़र भदोही सीट से भाग्य आजमा रहे हैं। सपा-बसपा गठबंधन हो जाने और कांग्रेस के समर्थन से आंकड़ों में अखिलेश यादव काफी मजबूत दिख रहे हैं, लेकिन सरकार की घेरेबंदी और भाजपा नेताओं की डेराबंदी नया गुल खिलाने के लिए बेताब है।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अमेठी के बाद अगर किसी दूसरी सीट पर सबसे अधिक फोकस है तो वह है आजमगढ़। योगी किसी भी हालत में अखिलेश यादव को हराना चाहते हैं। ऐसे में पूरी सरकारी मशीनरी भी पर्दे के पीछे उनके साथ खड़ी नजर आ रही है। भाजपा सरकार के कई मंत्रियों ने आजमगढ़ में डेरा डाल दिया है। सभी को टॉरगेट दिया गया है। उधर, अखिलेश यादव की व्यस्तता के कारण उनके चुनाव का जिम्मा बदायूं से खाली होने के बाद भाई धर्मेंद्र यादव ने संभाली है। सैफई के कुनबे के साथ ही सपा के पश्चिम यूपी के बड़े नेता आजमगढ़ में ही डेरा डाले हुए हैं। कई बार सपा और भाजपा कार्यकर्ताओं में टकराव हो चुका है। लड़ाई एक-एक वोट के लिए हो रही है। हालत यह है कि लोग जातियों में बंट चुके हैं। विकास के मुद्दे चुनाव से गायब हैं।
दरअसल, जब सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस सीट का चयन किया था तो सपा-बसपा का पिछले चुनाव का वोट प्रतिशत भाजपा से कहीं अधिक था, लेकिन योगी ने इसके बाद जो किलेबंदी की, वह सपा को विचलित करने वाला रहा। योगी ने भोजपुरी सुपर स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ को आजमगढ़ से प्रत्याशी बनवा दिया। पहले तो मुकाबला आसान लग रहा था, लेकिन चुनाव जब परवान चढ़ा तो यह कांटे की लड़ाई में तब्दील हो गया।
विश्वविद्यालय के मुद्दे को योगी ने कैश कराया
आजमगढ़ में एक दशक से अधिक समय से विश्वविद्यालय की मांग की जा रही थी। इसको लेकर छात्र और युवा कई बार सडक़ पर उतरे, लेकिन उन्हें आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला था। २०१४ में मुलायम सिंह यादव जब चुनाव में उतरे तो उस समय सपा की प्रदेश में सरकार थी। ऐसे में मुलायम सिंह यादव ने चुनाव के दौरान विश्वविद्यालय का आश्वासन दिया। चुनाव जीतने के लगभग दो साल बाद सपा सरकार ने विश्वविद्यालय बनवाने का विज्ञापन भी जारी कराया, लेकिन बाद में यह विश्वविद्यालय बलिया में स्थापित कर दिया गया, जिससे आजमगढ़ के युवाओं में सपा के प्रति नाराजगी बढ़। हाल में योगी ने अपने बजट में आजमगढ़ में विश्वविद्यालय स्थापित करने की घोषणा की। अब भाजपा इस घोषणा के सहारे लोगों से वोट मांग रही है।
2007 दंगे का दंश और योगी का प्रतिशोध
जनवरी 2007 में गोरखपुर में मामूली विवाद के बाद दंगा भडक़ गया था, जिसमें एक युवक की मौत हो गई। आरोप लगा कि योगी के भाषण से हिंसा और भडक़ गई। योगी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें हिरासत में ले लिया गया था। तब मुलायम सिंह यादव सूबे के मुखिया थे और योगी का मानना था कि उनके निर्देश पर यह मुकदमा कराया गया। तभी से योगी और मुलायम परिवार में ठन गई। हालांकि बाद में योगी को मामले में क्लीनचिट मिल गई थी। इसी मामले को लेकर योगी संसद में फूट-फूटकर रोए थे।