प्रभारी उप कृषि निदेशक डॉ. उमेश कुमार गुप्ता ने बताया है कि फसल अवशेष जलाये जाने का दूष्प्रभाव वायु प्रदूषण के रूप में धूप-कोहरा (स्मॉग) की मात्रा में वृद्धि होना है, जिससे न केवल स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है बल्कि कतिपय स्थानों पर अग्निकाण्ड जैसी भयानक घटनाएं भी घटित हो रही है। प्रदेश में पराली जलाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया गया है। इसके बाद भी जो लोग पराली जला रहे है उन्हें अर्थदंड देना पड़ रहा है। इस समस्याओं से बचने के लिए किसानों को अवशेष प्रबंधन अपनाने की जरूरत है।
उन्होंने बताया कि फसल अवशेष प्रबन्धन हेतु बायो डी-कम्पोजर एक प्रकार का सूक्ष्म जीव फफूद है, जिसका उपयोग सभी प्रकार के कृषि अवशेषों में उपयुक्त नमी देकर उनको कम से कम समय में सड़ाकर कार्बनिक खाद तैयार की जा सकती है।
खेत में सीधा प्रयोग-
20 ग्राम बायो डीकम्पोजर को 200 लीटर पानी के घोल में डालकर उसमें 02-03 किलोग्राम गुड़ डाल लेते हैं। घोल को ढ़क्कन से ढ़क देते हैं और 02 दिन तक घोल को किसी लम्बे डण्डे की सहायता से 02-03 बार चलाते हैं। इस घोल को उसी प्रकार 06-07 दिन छोड़ देते हैं तो घोल की सतह पर हरे व भूरे रंग का फंगस दिखाई देने लगता है। इस घोल को सातवें दिन अच्छी प्रकार मिलाकर सिचाई से पूर्व 01 एकड़ फसल अवशेष/पराली पर छिड़काव कर देते हैं।
गोबर कम्पोस्ट गड्ढे में प्रयोग-
उपरोक्त विधि से तैयार घोल को घूर गड्ढ़े में 15-30 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करने से 50 दिन में उच्च कोटि की कार्बनिक खाद तैयार हो जाती है। कृषक हित मे कृषि विभाग आजमगढ द्वारा जनपद के विभिन्न विकासखण्डो मे वेस्ट डी-कम्पोजर के माध्यम से फसल अवशेष को खेत में सडाकर खाद बनाने का 1000 एकड मे प्रदर्शन कराये जाने का लक्ष्य निर्धारित है। इच्छुक किसान अपने कार्यक्षेत्र के कृषि विभाग के कार्मिक/सहायक विकास अधिकारी (कृषि) से सम्पर्क कर इसका निःशुल्क लाभ उठा सकते है।
BY Ran vijay singh