बता दें कि कोविड संक्रमण काल में तमाम लोगों की जहां नौकरी छूट गयी। वहीं आय के संसाधन भी सिमट गए। इस बीच लगातार बढ़ी महंगाई के कारण आम आदमी के लिए जरूरत पूरी करनी मुश्किल हो गयी है। लोग किसी तरह अपनी जरूरतों को पूरी कर रहे हैं। अब एक बार फिर लोगों को बड़ा झटका लगता दिख रहा है।
अप्रैल से नया शैक्षिक सत्र शुरू हो गया है। सरकार ने निजी स्कूलों की फीस वृद्धि पर लगी रोक को हटा लिया है। वहीं दूसरी तरफ अब पुस्तक और ड्रेस, जूता आदि के कीमत में 30 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गयी है। ऐसे में अभिभावकों की दिक्कत काफी बढ़ती दिख रही है। स्कूली बैग की कीमत में सौ से डेढ़ सौ रुपये का इजाफा हुआ है। फुटवियर पर जीएसटी दर पांच से 12 फीसदी होने के बाद स्कूल शूज की कीमतों में 150 रुपये तक का इजाफा हुआ है।
जबकि कॉपी किताबों और स्कूल ड्रेस की दुकानों पर जाकर हाल जाना गया तो अभिभावकों का दर्द सामने आया। अधिकतर अभिभावकों का कहना है कि कोर्स में हर बार कुछ किताबें महंगे प्रकाशक की जोड़ दी जाती हैं। इस कारण जो किताब बाजार में 200 रुपये तक मिल सकती है, वो 400 से 450 रुपये में मिलती है। वहीं स्कूली बैग के भी दाम बढ़ गए हैं। ड्रेस भी महंगे हो गए हैं। ऐसे में पढ़ाई महंगी होती जा रही है। जिससे अभिभावकों पर बोझ बढ़ता जा रहा है।
अभिभावक राकेश राय, नायब यादव, अभिषेक मिश्र, राजेश कुमार आदि का कहना है कि पहले तो सरकार को चाहिए कि सभी निजी स्कूलों में एनसीआरटी की बुक लागू करे। इससे अभिभावकों का शोषण रुकेगा। आज ज्यादातर स्कूलों में मनमाने ढंग से खुद किताब से लेकर ड्रेस बेची जा रही है। किताब से लेकर ड्रेस तक के नाम पर खुलेआम शोषण किया जा रहा है। यही नहीं अब तक फीस भी बढ़ने वाली है। यही नहीं डीजल की महंगाई को देखते हुए बस का किराया भी बढ़ाने की बात की जा रही है। ऐसे में अपने बच्चे को अच्छे स्कूल में पढ़ाना मुश्किल होगा।