यहां हर श्रेणी के हथियार आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं और वह भी किसी सरकारी फैक्ट्री निर्मित असलहे की तुलना में कही से भी कोई कमी नहीं रहता। दोनो प्रकार के असलहों में अन्तर मात्र इतना होता है कि लाइलेंसी हथियार को लेकर आप खुलेआम घूम सकते है किन्तु बम्हौर निर्मित हथियार को लेकर खुलेआम नहीं घूम सकते है। यह कारोबार खूब फल-फूल रहा है। जिले की पुलिस है कि चुप्पी साधे हुए है।
यहां बने असलहा उस समय से चर्चा में हैं जब गुलशन कुमार की हत्या में इनका इस्तेमाल हुआ था। मुबारकपुर थाने का बम्हौर गांव थाने से तीन किलोमीटर पश्चिम तमसा नदी के किनारे बसा हुआ है। यहां की जमीन समतल न होकर काफी ऊॅंची नीची है। यहां यादव, कोइरी, लोहार सहित पिछड़ी जाति की हर बिरादरी के लोग बसे है। अब से लगभग 15 वर्ष पूर्व यहां एक लोहार चोरी छिपे कट्टा बनाने का कार्य शुरू किया जो लम्बे समय के पश्चात पुलिस की नजरों में आया और पुलिस ने उसे सामान सहित जेल भेज दिया।
जमानत पर रिहा होने के बाद वह पुनः पुलिस को माहवारी बांध कर इस धन्धे में जुड़ गया और इसी धन्धे से उसकी आर्थिक स्थिती भी काफी सुदृढ़ हो गयी। उसी को देखकर आज गांव के प्रायः हर बिरादरी के लोग इस धन्धे से जुड़ गये है। और इससे पुलिस को अच्छी आमदनी भी हो जाती है। यहीं के बने कट्टे से कैसेट किंग गुलशन कुमार की हत्या की गयी थी।
यहां सभी प्रकार के हथियार आसानी से उपलब्ध हो सकते है। कभी-कभी अधिकारियों में अपनी छवि बनाने के लिए पुलिस इन्हीं में से किसी को कुछ सामान के साथ पकड़कर जेल भेज देती है। आज इस गांव के लिए अवैध असलहा बनाना कुटीर उद्योग बन गया है।