scriptकार्तिक पूर्णिमाः आजमगढ़ में टूटी सैकड़ों साल पुरानी परम्परा, दुर्वासा धाम पर पहली बार नहीं लगा मेला | Kartik Purnima 100 of Years old Tradition Break No Fair on Durvasa Dha | Patrika News

कार्तिक पूर्णिमाः आजमगढ़ में टूटी सैकड़ों साल पुरानी परम्परा, दुर्वासा धाम पर पहली बार नहीं लगा मेला

locationआजमगढ़Published: Nov 30, 2020 09:04:17 am

दुवार्सा ऋषि की तपोस्थली पर प्रतिवर्ष होता था दो दिवसीय मेले का आयोजन
देश के विभिन्न हिस्सों से पहुंचते थे तीन लाख से अधिक श्रद्धालु
मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर तमसा मंजुसा के संगम में स्नान से धुल जाते हैं सौ पाप
कोरोना को देखते हुए स्नान की छूट लेकिन मेले की नहीं मिली अनुमति, भक्त निराश

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दुर्वासा धाम पर संगम में स्नान करते भक्त

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
आजमगढ़. कोरोना महामारी के चलते आजमगढ़ के प्रसिद्ध पौराणिक स्थल दुर्वासा धाम पर सैकड़ों साल पुरानी परम्परा टूट गयी। लोग तमसा मंजुसा के संगम में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति की प्रार्थना करने में सफल रहे लेकिन यहां लगने वाले ऐतिहासिक मेले का आनंद नहीं उठा पाए। कारण कि प्रशासन ने मेले की अनुमति ही नहीं प्रदान की। वहीं देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले दो लाख से अधिक भक्तों को भी निराश होना पड़ा। कारण कि महामारी के चलते वे दर्शन के लिए नहीं आ पाए।

बता दें कि दुर्वासा धाम प्राचीन पौराणिक स्थल है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा माह में विभिन्न नदियों के संगम में स्नान करने पर अत्यधिक पुण्य मिलता है। इसमें कार्तिक पूर्णिमा के दिन दुर्वासा में किये गए स्नान का विशेष महत्त्व है। हिन्दू मान्यताओं के स्रोत पुराणों विशेष रूप से भविष्य पुराण में उल्लेख है कि महर्षि अत्रि और माता अनसुइया के तीनों पुत्र दुर्वासा, दत्तत्रेय व चंद्रमा मुनि ने तमसा नदी के संगम स्थलों को तपस्या के लिए चुना था।

चंद्रमा ऋषि ने तमसा सिलनी व दत्तत्रेय ने तमसा व कुंवर नदी के संगम को तप के लिए चुना था जबकि दुर्वासा ऋषि काशी और कौशल के मध्य स्थित तमसा नदी व मंजुसा के संगम पर तप किया था। पुराण के अनुसार दुर्वासा 14 साल के उम्र में यहां आये और कलयुग के आरंभ तक यहीं तप किये। कलयुग के आरंभ काल में वे यहीं अंतरध्यान हुए जिससे इस स्थान का महत्व काफी बढ़ जाता है। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां स्नान से सौ पापों से मुक्ति मिलती है।

प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को यहां दो दिवसीय मेले का आयोजन होता है। लोगों संगम में स्थान के बाद भगवान शिव की आराधना करते है। यहां प्रति वर्ष 3 से 4 लाख भक्त देश के विभिन्न हिस्सों से स्नान के लिए पहुंचते थे लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण को देखते हुए मेले की अनुमति नहीं मिली। स्थानीय लोगों को संगम में स्नान पर कोई रोक नहीं थी। उपजिलाधिकारी फूलपुर रावेन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि कार्तिक पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं को स्नान करने की छूट दी गयी थी लेकिन मेले की अनुमति नहीं दी गयी थी जिसके कारण मेले का आयोजन नहीं हुआ। प्रशासन की इस पाबंदी से सैकड़ों साल पुरानी परम्परा टूट गयी।

BY Ran vijay singh

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