क्या है मान्यता
सती अनुसुइया एवं अत्रि मुनि के पुत्र महर्षि दुर्वासा 12 वर्ष की आयु में चित्रकूट से फूलपुर तहसील क्षेत्र के वर्तमान गांव बनहर मय चक गजड़ी के पास तमसा-मंजूसा नदी के संगम स्थल पर पहुंचे थे। यहां उन्होंने वर्षों तक तप किया। पौराणिक कथाओं के अनुसार सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग में महर्षि दुर्वासा उक्त स्थान पर रहे। कलयुग के प्रारम्भिक काल में वे तप स्थल पर ही अन्तर्ध्यान हो गये। वहां आज उनकी भव्य प्राचीन प्रतिमा है। प्रतिमा भी ऐसी की शायद ही कोई खुली आंखों से थोड़ी देर तक प्रतिमा को देख सके।
तमसा-मंजुसा के संगम पर तपोस्थली
आदि गंगा के नाम से प्रसिद्ध तमसा व मंजुसा नदी के संगम पर दुर्वासा ऋषि का आश्रम स्थित है। संगम के पश्चिम सिधौनी गांव स्थित है। यह प्राचीन सिद्धावनी (सिद्ध भूमि) का अपभ्रंस है, जिसके विषय में श्रुत्र प्रमाण है कि भगवान शिव के अंश महर्षि दुर्वासा ने 88 हजार ऋषियों के साथ इस पवित्र भूमि पर यज्ञ किया था। इस भूमि पर अनवरत श्री राम नाम का संकीर्तन आज भी होता रहता है। गुप्त रूप में अनेक ऋषिगण यहां निवास करते रहते हैं।
प्रति वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर लगा है मेला
दुर्वासा ऋषि आश्रम पर यहां प्रति वर्ष तीन दिवसीय मेले का आयोजन होता है। इस बार भी मेले की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। पूर्णिमा 19 नवंबर को है लेकिन भक्त 17 नवंबर से ही यहां पहुंचने लगे हैं ताकि उन्हें रहने आदि के लिए स्थान मिल सके। यहां देश के विभिन्न हिस्सों से 2 से 3 लाख लोगों के पहुंचने की उम्मीद है। प्रशासन की तरफ से सुरक्षा आदि के कड़े इंतजाम किये गए हैं।
100 पापों से मिलती है मुक्ति
दुर्वासा धाम प्रसिद्ध पौराणिक स्थलों में शामिल है। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन संगम में स्नान करने व भगवान की श्रद्धा के साथ पूजा अर्चन करने से 100 पापों से मुक्ति मिलती है। यही वजह है कि यहां लगने वाले मेले में पूरे देश से लोग पहुंचते हैं।