ऊन की बिक्री में पिछले पांच साल में करीब 75 फीसद तक की गिरावट आई है। रेडिमेड ने हाथ के बुने स्वेटर को चलन से बाहर कर दिया। घरों में स्वेटर बुनने का चलन समाप्त हो रहा है। दूसरी तरफ रेडीमेड स्वेटर और जैकेट के बढ़ते फैशन के चलते भी हाथ से बुने स्वेटर कम दिखते हैं। हालांकि हाथ के बुने स्वेटर के शौकीन अभी भी हैं, भले ही उनकी सीमित संख्या है। बाजार में ऊन के ब्रांडेड और लोकल कई रेंज हैं। लुधियाना का ऊन पहली पसंद रहा है। अमृतसर, दिल्ली, जम्मू कश्मीर के बने ऊन भी उपलब्ध हैं।
ऊन के कारोबारी अनिल जायसवाल, मनीष जायसवाल, रहमान शेख कहते हैं कि बाजार में इस समय ऊन की दुकानें कम होती जा रही है। कारण की अब इसकी बिक्री ही नहीं है। माल मंगाने के बाद पैसा फंस जा जाता है। फिर भी कारोबार है तो सभी तरह के ब्रांड रखने ही पड़ेते लेकिन अब ग्राहक कम ही नजर आते है। गत वर्ष की तुलना में रेट में करीब दस फीसद वृद्धि भी हुई है। बाजार में 450 से 900 रुपये प्रति किलो के उन उपलब्ध हैं। जबकि ऊन का प्रति पचास ग्राम गोला 50, 75, 100 रुपये में उपलब्ध हैं। बाजार में फेदर ऊन भी प्रचलन में है। यह काफी नरम होता है। वहीं फेदर ग्लाब, गालसम, क्रिसिटिना, जुगनू, प्लेन गाला, फैशन, बेबी केयर, लिटिल लिंगर प्रमुख है।
इस बारे में पूछने पर गृहणी उमा जायसवाल, पूनम सिंह, साधना गुप्ता, प्रिया आदि कहती है कि पहले तो आज किसी के पास इतना समय नहीं है कि बुनाई कर सके, दूसरे बच्चे से लेकर बड़े तक ब्रांडेड रेडीमेट स्वेटर ही पसंद करते है। पिछले कुछ समय में स्वेटर से ज्यादा बच्चो का रूझान जैकेट की तरफ बढ़ा है। बुजुर्ग ही बुना हुआ स्वेटर पंसद करते है। ऐसे में अगर बुनाई भी की जाय तो पहनने वाले नहीं मिलेंगे।
by Ran Vijay Singh