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जानिए कौन हैं गुड्डू जमाली जिनका बसपा से भंग हुआ मोह, अब नई पारी की बना रहे रणनीति

locationआजमगढ़Published: Nov 27, 2021 10:38:52 am

Submitted by:

Ranvijay Singh

मुबारकपुर विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को मायावती ने लालजी वर्मा के स्थान पर विधान मंडल का नेता बनाया था। लेकिन चंद महीने में ही जमाली का मोह बसपा सेे भंग हो गया और उन्होंने पार्टी के सभी पदों से त्यागपत्र दे दिया। कम ही लोग जानते हैं कि जमाली सिर्फ मायावती के ही करीबी नहीं थे बल्कि उनके भाई आनंद के भी बेहद करीबी और बिजनेस पार्टनर हैं। जमाली का एकाएक बसपा छोड़ना बड़े बदलाव का संकेत माना जा रहा है।

विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली

विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
आजमगढ़. 2022 के विधानसभा चुनाव में यूपी की सत्ता हासिल करने की कोशिश में जुटी बसपा मुखिया मायावती का पूर्वांचल के मुस्लिम मतों को साधने के लिए मुबारकपुर विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को विधानमंडल का नेता बनाकर चला गया दाव फेेल हो गया है। मुस्लिम मतदाताओं को साधना तो दूर अब जमाली ने स्वयं भी बसपा से नाता तोड़ लिया है। वैसे शाह आलम ने भले ही उपेक्षा का आरोप लगाकर बसपा छोड़ा हो लेकिन राजनीति के जानकारी इसे व्यवसायिक कारण मान रहे हैं। शाह आलम कौन है और मायावती के इतने करीबी कैसे बने और उनका मोह बसपा से क्यों भंग हुआ यह कम लोग ही जानते है।

आजमगढ़ शहर के रहने वाले मुबारकपुर विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को बडे बिजनेस मैन है। इन्हें यूपी के बड़े बिल्डरों में गिना जाता है। इनकी पूर्वांचल कांट्रक्सन कंपनी का गाजियाबाद, नोयडा जैसे शहरों में बड़ा नाम है। इसी कारोबार के दौरान वे मायावती के भाई आनंद के संपर्क में आये। कहतेे तो यहां तक हैं कि दोनों बिजनेस पार्टनर भी है। आनंद के जरिये ही जमाली ़मायावती तक पहुंचे। जमाली के पास अकूत संपत्ति थी ही धीरे-धीरे पार्टी का काम करते हुए वे मायावती के करीबी होते गए। वर्तमान में पैसे के मामले में मायावती से कहीं आगे हैं।

जमाली का ज्यादातर समय बाहर गुजरा इसलिए जब मायावती ने वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में जमाली को मुबारकपुर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ाया तो वे आम आदमी के लिए बिल्कुल ही नए चेहरे थे। चुनाव में जिले की दस विधानसभा सीटों में नौ सपा के खाते में गई। मुबारकपुर सीट जमाली जीतने में सफल रहे। यह अलग बात है कि हार जीत का अंतर काफी कम था लेकिन जमाली की जीत से सपा का आजमगढ़ क्लीन स्वीप का सपना अधूरा रह गया था।
इसके बाद वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जब मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ से चुनाव लड़े तो मायावती ने फिर जमाली पर भरोसा जताया और मुलायम के खिलाफ मैदान में उतार दिया। यह अलग बात है कि जमाली तीसरे नंबर पर रहे। मुलायम सिंह से उन्हें करीब 73 हजार कम वोट मिले। जबकि मुलायम बीजेपी प्रत्याशी रमाकांत यादव को 63 हजार मतों से हराने में सफल रहे थे। मुलायम की जीत का अंतर कम होने का कारण जमाली को माना गया था। कारण कि जमाली दलित के साथ ही कुछ मुस्लिम मतदाताओें को साधने में सफल रहे थे।

लोकसभा हार के बाद भी मायावती ने जमाली से भरोसा कम नहीं हुआ। 2017 के विधानसभा चुनाव में मायावती ने मुबारकपुर सीट से फिर जमाली को मैदान में उतारा। जमाली चुनाव जीतने में सफल रहे। जून में मायावती ने जमाली को विधानमंडल का नेता बनाकर पूर्वांचल के मुस्लिम मतदाताओं को साधने की कोशिश की। माना जा रहा है कि चुनाव में बसपा को इसका फायदा मिलेगा लेकिन दो दिन पूर्व जमाली ने बसपा से सभी पदों से एकाएक त्यागपत्र दे दिया। यह बसपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। अटकलें तो यहां तक लगाई जा रही है कि वे सपा में शामिल हो सकते हैं।

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