मूलरुप से आजमगढ़ जिले के बड़गहन गांव निवासी सुखदेव राजभर ने एलएलबी करने के बाद ही बामसेफ से जुड़ गए थे। उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत वकालत से की। उन्हें दीवानीं न्यायालय के अच्छेे वकीलों में गिना जाता था। वकालत करते हुए वे कांशीराम के साथ बसपा की नींव रखे।
उनके साथ मिलकर बसपा को खड़ा करने में मदद की। वर्ष 1991 के विधानसभा चुनाव में राम लहर के बाद भी वे बीजेपी के नरेंद्र सिंह को हराकर लालगंज से पहली बार विधायक चुने गए। वर्ष 1991-1992 वे अनुसूचित जाति जनजाति तथा विमुक्त जातियों सम्बन्धी संयुक्त समिति के सदस्य रहे। वर्ष 1993 में हुए उपचुनाव में उन्होंने लालगंज से दोबारा जीत हासिल की और दूसरी बार विधायक बने। इसके बाद इन्हें सपा-बसपा गठबंधन सरकार में राज्य मंत्री सहकारिता, मुस्लिम वक्फ विभाग दिया गया। वर्ष 1994 अगस्त से जून 1995 तक वे राज्य मंत्री माध्यमिक व बेसिक शिक्षा विभाग रहे।
वर्ष 1995 में मायावती सरका में उन्हें माध्यमिक, बेसिक एवं प्रौढ़ शिक्षा विभाग क मंत्री बनाया गया। वर्ष 1996 में हुए विधानसभा चुनाव में वे भाजपा के नरेंद्र सिं से हार गए। इसके बाद उन्हें मायवती ने विधान परिषद भेजा। 1997 में इन्हें ग्राम विकास, अम्बेडकर ग्राम विकास तथा प्रान्तीय विकास दल विभाग मंत्री बनाया गया। भाजपा व बसपा गठबंधन में बनी कल्याण सिंह की सरकार में वे ग्राम विकास, लघु सिंचाई मंत्री रहे। वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में वे लालगंज से तीसरी बार विधायक चुने गए। इसके बाद बसपा ने इन्हें संसदीय कार्य, वस्त्रोद्योग एवं रेशम उद्योग मंत्री बनाया। वर्ष 2002-03 में नियम समिति के सदस्य बनाए गए। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में सुखदेव राजभर चौथी बार विधायक बने तो मायावती ने अपनी सरकार में विधानसभा अध्यक्ष बनाया। इसके बाद वर्ष 2017 के चुनाव में सुखदेव पांचवी बार दीदारगंज विधानसभा क्षेेत्र से विधायक चुने गए।
सुखदेव राजभर की अति पिछड़े समाज खासतौर पर राजभरों के बीच गहरी पैठ मानी जाती है। पूर्वांचल में करीब 8 प्रतिशत राजभर है। इन्हीं के जरिए मायावती इन जाति के वोटों को साधने की कोशिश करती रही है। अब सुखदेव ने बसपा छोड़ दिया है तो मायावती की मुश्किल बढ़नी तय है। कारण कि सुखदेव के बाद बसपा में कोई बड़ा राजभर चेहरा नहीं बचा है।