कृषि विज्ञान केन्द्र कोटवा के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डा. आरपी सिंह का कहना है कि केन्द्र द्वारा किसानों को बीज शोधन का प्रशिक्षण दिया जा चुका है। वर्तमान समय में मौसम के लगातार बदल रहे मिजाज एवं खरीफ में कम उत्पादन होने के कारण दलहनी फसलों की बोआई काफी अधिक क्षेत्रफल में की गयी है। दलहनी फसलों को कीट व्याधियों का सबसे अधिक खतरा होता है इसलिए इन फसलों को बचाने के लिए समय से प्रबन्धन जरूरी है।
अरहर में फूल लगने लगे हैं। कुछ स्थानों पर चने में फली लग रही है। फली भेदक कीट दलहनी फसल के उत्पादन को कम करने के लिए मुख्यतः जिम्मेदार होते हैं। इस समय फसलों को इन कीट से बचाना बेहद आवश्यक है। इसके लिए किसान नियमित रूप से अपने खेतों की निगरानी करे। यदि पौध में एक भी अंडा या सुंडी (लारवा) दिखे तो तुरन्त नियंत्रण के उपाय करें। यदि फलियों में दाने नहीं बने हैं तो खेत में थोड़ी-थोड़ी दूर पर दो फिट लम्बे पांच डंडे प्रति हेक्टेअर के हिसाब से गाड़ दें ताकि कीट भक्षी चिडिय़ा उस पर बैठे और कीट का शिकार करे।
उन्होंने बताया कि चने के लिए यह बेहद हानिकारक कीट हैं। यह कीट फलियों में सिर घुसाकर दानों को खा जाती हैं। विकास की विभिन्न अवस्थाओं में कीटों का लारवा सात रंगों में मिलता है। अंडों का रंग चमकीले मलाई जैसा होता है। एक मादा कीट अपने जीवन में 509 से 750 अंडे देने की क्षमता रखती है। अंडों में से चार से आठ दिन में सुंडी निकलती है। 15 से 28 दिन में यह पांच बार केचुल बदलते हैं। प्यूपा 4 से 8 सेमी भूमि के अन्दर बनते हैं। अंडे से निकलने के बाद लारवा मुलायम पत्तियों को खाते हैं।
तीन-चार बाद केचुल बदलने के बाद फलियों में सिर घुसाकर खाना शुरू कर देता हैं। यह कीट सूरजमुखी, टमाटर, मटर, पात गोभी, मिर्च, सेम, भिंडी आदि को भी हानि पहुंचाता है। चने की फसल में यदि प्रति मीटर क्षेत्रफल में एक सुंडी (लारवा) मिले तो तुरंत दवाओं का छिड़काव करना चाहिए। उन्होंने बताया कि चने में थायोडिस्कार्ब 75 डब्लूपी 0.6 ग्राम प्रति लीटर अथवा प्रोफेनोफाश 50 ईसी दो मिलीलीटर प्रति लीटर या मेथोमिल 40 एसपी 0.6 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। दूसरे छिड़काव में 5 प्रतिशत नीम के सत का प्रयोग करें। तीसरे छिड़काव में एचएनबीपी का 250 एलई (चने के लिए) तथा 350 एलई (अरहर के लिए) प्रति हेक्टेअर की दर से छिड़काव करें। इसके बाद 5 प्रतिशत मैलाथियान पाउडर का 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेअर की दर से बुरकाव करें।
ऐसे पहचानें फली भेदक कीट
आजमगढ। डा. आरपी सिंह ने बताया कि गंधपाश या फेरोमोन ट्रेप एक ऐसा उपकरण है जो फली भेदक कीटों को खेत में आने की सही जानकारी देता है। यह प्लास्टिक का बना एक उपकरण है जिसमें रबर का घुण्डीनुमा सेप्टा लगा होता है। इस सेप्टा को ल्योर भी कहते हैं, जिसमें कृत्रिम रूप से संश्लेषित की हुई फली भेदक मादा की गंध होती है। फलीभेदक कीट के वयस्क रात्रिचर होते हैं। गंधपास को एक हेक्टेअर में पांच-छह स्थानों पर पौधे से 1.6 मीटर लम्बे डण्डे में लगा दिया जाता है। रात्रि के समय जब नर कीट बाहर निकलते हैं तो ट्रेप से आकर्षित होकर उसके पास जाते हैं और फंस जाते हैं। यदि एक रात में ट्रैप में फंसे कीटों की संख्या छह-सात हो तो नियंत्रण के उपाय तुरंत शुरू करने चाहिए।