पशुधन वैज्ञानिक एलसी वर्मा बताते हैं कि यह रोग कई प्रकार के जीवाणुओं से उत्पन्न होता है। इसीलिए इसको मस्टाइटिस कामप्लैक्स भी कहा जाता है। मुख्य रूप से स्ट्रैप्टोकोकस, स्टेफाइलोकस, कोर्नीबैक्टिरियम, ईकोलाई आदि जीवाणु इस रोग को उत्पन्न करते हैं। रोग के कुछ अन्य कारण भी हैं जैसे अयन या थन में चोट, ग्वाले के गंदे हाथ, पशुशाला में कुप्रबन्धन, गीला तथा गंदा फर्श, मक्खियों की अधिकता, आहार में प्रोटीन की अतिरिक्त मात्रा एवं दूध निकालने का गलत तरीका आदि।
जीवाणु, थन में चोट, रगड़ एवं पशु के गंदे या भीगे फर्श पर बैठने के कारण अयन में प्रवेश कर जाते हैं। पशु दूहने की मशीन, पशु दुहने वाले के गंदे हाथ, खून चूसने वाली मक्खियां रोग के प्रसार में सहायक बनती हैं। इसकी चपेट में आने पर पशु को बुखार रहता है। वह बेचैन रहता है, भूख नहीं लगती, अयन गर्म एवं लाल हो जाता है। थन में दूध कम आता है। दूध हल्का पीला हो जाता है। बाद में चलकर अयन शक्त हो जाता है। दबाने पर दूध नहीं निकलता है।
उन्होंने बताया कि पीड़ित पशु के सूजे हुए अयन पर आयोडिन मरहम अथवा आयोडेक्स लगाना चाहिये। गर्म पानी में मैगसल्फ, बोरिक एसिड तथा नीम की पत्ती डालकर सेंका जा सकता है। थन में सड़न होने पर 100 ग्राम नेनुआ की पत्ती को 250 मिली पानी के साथ पीसें इसे प्रभावित भाग पर लगाकर सूती कपड़े से बांध दें। होम्योपैथिक दवा फाइटोलक्का-1000 को 5 बूंद सुबह 15 दिन तक देने पर थनैली समाप्त हो जाती है।