गिरधारी को शातिर किस्म का अपराधी माना जाता था। पुलिस को वह अक्सर डाज देने में सफल रहता था। 19 जुलाई 2013 को जीयनपुर में आवास के सामने हुई पूर्व विधायक सर्वेश सिंह सीपू की हत्या में भी गिरधारी का नाम सामने आया था। पूर्व विधायक की हत्या में कुंटू के साथ गिरधारी को आरोपी बनाया गया था लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी पुलिस गिरधारी तक नहीं पहुंच सकी थी। हत्या के सात साल बाद वह आजाद घूूम रहा था।
कुंटू सिंह की गिरफ्तारी के बाद से उसके आपराधिक नेटवर्क का संचालन वही करने लगा था। कुंटू गिरोह के लिए पैसों की वसूली से लेकर हत्या, लूट, छिनैती सहित गिरोह के सभी लोग गिरधारी की देखरेख में काम करते थे। यूं भी कहा जा सकता है कि कुंटू के जेल में रहते वह डी-11 गैंग का मुखिया था। उसकी मर्जी के बिना गिरोह के सदस्य कोई काम नहीं करते थे। पुलिस को लंबे समय से उनकी तलाश थी लेकिन पुलिस कभी उसका लोकेशन तक ट्रेस नहीं कर पाई गिरफ्तारी तो दूर की बात है।
मूल रूप से वाराणसी का रहने वाले गिराधारी की आपराधिक गतिविधियों का केंद्र आजमगढ़ ही था। वह कुंटू के डी-11 गैंग का तो सदस्य था ही लेकिन दूसरे अपराधियों के लिए भी काम करता था। जिले के विभिन्न थानों में उस पर कुल 15 मुकदमे दर्ज हैं। इसमें सर्वाधिक पांच मुकदमें जीयनपुर कोतवाली में है। पूर्व विधायक सर्वेश सिंह सीपू हत्याकांड में गवाही शुरू हुई तो कुंटू के साथ ही गिरधारी को अपने जीवन पर खतरा लगने लगा। उसे लगा कि सजा हो सकती है। इसके बाद सीपू हत्याकांड के मुख्य गवाह अजीत सिंह की लखनऊ में हत्या की योजना आजमगढ़ जिला कारागार में बनी जरूर लेकिन उसे अंजाम गिरधारी ने ही दिया। गिरधारी की देखरेख में ही अजीत सिंह की हत्या हुई, जिसका खुलास लखनऊ पुलिस कर चुकी है।
एनकाउंटर में गिरधारी की मौत से डी-11 गैंग को बड़ा झटका लगा है वहीं सीपू हत्याकांड के अन्य गवाहों ने राहत की सांस ली है। गिरधारी की मौत की सूचना पर जीयनपुर में मिठाई तक बांटी गयी। माना जा रहा है कि गिरधारी की मौत से डी-11 गैंग ही नहीं बल्कि कुंटू सिंह भी कमजोर होगा। अब उसके लिए जेल में बैठकर घटनाओं को अंजाम दिलाना आसान नहीं होगा।
BY Ran vijay singh