scriptUP Assembly Election 2022 : एक दशक में मऊ में कम हुआ है बाहुबली मुख्तार का वर्चश्व, 2022 में ढह सकता है किला | Mafia Mukhtar political career in danger not easy in 2022 elections | Patrika News
आजमगढ़

UP Assembly Election 2022 : एक दशक में मऊ में कम हुआ है बाहुबली मुख्तार का वर्चश्व, 2022 में ढह सकता है किला

-लगातार कम हो रही है मुख्तार के समर्थकों की संख्या
-46.78 प्रतिशत मत प्राप्त कर वर्ष 2007 में लिर्दल जीत बनाया था रिकार्ड
-बसपा से आने के बाद भी वर्ष 2017 में हासिल कर पाया था मात्र 24.19 प्रतिषत वोट

आजमगढ़Sep 12, 2021 / 02:45 pm

Ranvijay Singh

मुख्तार अंसारी

मुख्तार अंसारी

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
आजमगढ़. UP Assembly Election 2022 : माफिया मुख्तार अंसारी की कभी मऊ में तूती बोलती थी। मुख्तार को मऊ में अजेय कहा जाता है। कारण कि उसने पांच विधानसभा चुनाव लगातार जीते है। जिसमें चार बार वह जेल में रहकर जीता है लेकिन पिछले एक दशक में इस जिले में मुख्तार का वर्चश्व कम हुआ है। इस बार मायावती ने मुख्तार को टिकट भी नहीं दिया। ऐसे में फिर उसके निर्दल उतरने की संभावना है। बसपा ने ऐसा उम्मीवार मैदान में उतारा है जो मुख्तार को नजदीकी टक्कर दे चुका है। वहीं सपा और भाजपा की नजर भी इस सीट पर है। मुख्तार की लगातार गिरती साख के कारण चर्चा जोरों पर है कि वर्ष 2022 में उसका किला ढह सकता है।

बता दें कि कभी पूर्वांचल में दशहत का दूसरा नाम था मुख्तार अंसारी। खासतौर पर मऊ में उसके मुकाबले खड़े होने की हिम्मत कम लोग ही जुटा पाते थे। भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के बाद से धीरे-धीरे मुख्तार के सितारे गर्दिश में जाते दिखे। वर्ष 2017 में योगी की सरकार बनने के बाद जिस तरह से मुख्तार और उसके गुर्गो के खिलाफ कार्रवाई हुई उससे मुख्तार का साम्राज्य पूरी तरह ढह गया है। अब मुख्तार को खुद के जीवन पर खतरा नजर आ रहा है।

वहीं दूसरी तरफ मुख्तार की साख जनता के बीच लगातार गिरी है। अपनी दबंगई और दहशत के बल पर पांच बार लगातार मऊ सीट से जीतकर विधानसभा चुनाव जीतने वाले मुख्तार की राह अब मुश्किल होती दिख रही है। गौर करें तो मुख्तार अंसारी वर्ष 1996 में पहला चुनाव बसपा के टिकट पर लड़ा था। उस समय मुख्तार ने 45.85 प्रतिशत मत हासिल कर एकतरफा जीत हासिल की थी।

इसके बाद क्षेत्र में उसका रुतबा बढ़ता गया। वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में वह मऊ सीट से निर्दल उतरा तो 46.06 प्रतिशत मत हासिल कर रिकार्ड बनाया। वर्ष 2007 के चुनाव में जब बसपा की लहर थी और पार्टी ने पूर्ण बहुमत हासिल किया था। उस समय भी मुख्तार ने निर्दल लड़कर 46.78 प्रतिशत मत हासिल कर जीत हासिल की थी। यह मुख्तार की सबसे बड़ी जीत थी। वर्ष 2012 के चुनाव से पूर्व मुख्तार ने अपनी खुद की पार्टी कौमी एकता दल का गठन किया। इसी दल से वह मैदान में उतरा लेकिन तब तक मुख्तार का खौफ और रुतबा दोनों कम हो चुका था। मुख्तार जीत तो गया लेकिन इस चुनाव में उसे सिर्फ 31.24 प्रतिशत मत मिला। वर्ष 2016 में मुख्तार की पार्टी के सपा में विलय को लेकर विवाद हुआ तो उसके भाई अफजाल अंसारी ने कौएद का बसपा में बिलय किया और मुख्तार फिर बसपा से मैदान में उतरा। इस बार भी वह विधायक तो चुना गया लेकिन उसे मात्र 24.19 प्रतिशत वोट मिला।

चुनावी आंकड़े साफ बयां कर रहे है कि मुख्तार की साख क्षेत्र में काफी कम हुई है। वहीं अब मायावती ने भी मुख्तार से किनारा कर लिया है। मुख्तार के बड़े भाई अपने पुत्र के साथ सपा में शामिल हो चुके हैं लेकिन इस बात की कम संभावना है कि अखिलेश यादव मुख्तार को सपा के टिकट पर मैदान में उतारेंगे। ऐसे में मुख्तार के निर्दल मैदान में उतरने की संभावना है। वहीं मायावती ने मुख्तार के खिलाफ भीम राजभर को उम्मीदवार बना दिया है। वर्ष 2005 में भीम मुख्तार से पांच हजार मतों के मामूली अंतर से हारे थे। जबकि उस समय सपा की लहर थी। इस चुनाव में भी सपा और भाजपा की नजर इस सीट पर है। ऐसे में मुख्तार की राह आसान नहीं दिख रही है। चर्चा तो यहां तक शुरू हो गयी है कि जो हालात है उसमें पहली बार मुख्तार का किला ढह सकता है।

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