28 फरवरी के पैथोलॉजी बंद की गई थी। इसके बाद से अस्पताल में सिर्फ शूगर, मलेरिया, टीएलसी और डीएलसी की ही जांच होती है। सैंपल कलेक्शन सुबह 9 बजे से शुरू होकर रात 11 बजे बंद हो जाता है। इसके बाद यह जांचे भी बाहर से करानी पड़ती हैं। बता दें कि 50 लाख की आबादी वाले जिले में 83 प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर रहते हैं। इनकी आमदनी इतनी नहीं कि निजी अस्पतालों की मंहगी स्वास्थ्य सेवा ले सके। यह पूरी तरह सरकारी अस्पतालों खासतौर पर मंडलीय/जिला अस्पताल व जिला महिला अस्पताल पर निर्भर हैं। यहां मरीजों को निशुल्क जांच सुविधा देने के उद्देश्य से प्रदेश स्तर ने पीपीपी मॉडल के तहत पैथालाजी स्थापित की थी। हर छोटी से बड़ी जांच की सुविधा इस पैथोलॉजी पर मरीजों के लिए निशुल्क उपलब्ध थी।
यही हाल जिला महिला अस्पताल का भी है। इसका कान्ट्रैक्ट चंदन डायग्नोसिस को मिला था। यह कान्ट्रैक्ट तीन महीने का था। कान्ट्रैक्ट खत्म होने के बाद नवीनीकरण न होने पर सेंटर को बंद कर दिया गया। 28 फरवरी को पीओसीटी सर्विसेस कंपनी का भी कांट्रैक्ट समाप्त हो गया। माना जा रहा था कि कोरोना के कहर और आम आदमी की सुविधा को देखते हुए शासन द्वारा कम से कम इस कंपनी का अनुबंध बढ़ाया जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बल्कि पत्र भेज कर कर्मचारियों को हटाने का निर्देश जारी कर दिया।
समय के साथ नहीं बढ़ रहीं सुविधाएं स्थानीय निवासी नायब यादव इस मामले सरकारी सुविधाओं को दोष दिया है। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब ज्यादा चिकित्सीय सुविधाओं की जरूरत है, तो उन्हें बढ़ाने की जगह सरकार सुविधाओं को कम कर रही है। पीपीपी माडल के पैथालाजी को वर्तमान में शुरू कर देना चाहिए ताकि कोरोना के साथ-साथ मलेरिया, टायफाइड आदि की भी जांच आसानी से हो सके। इस मामले में प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एस केजी सिंह ने बताया कि जिस कंपनी का कांट्रैक्ट था वह फरवरी में समाप्त हो गया। कान्ट्रैक्ट बढ़ाए जाने के लिए शासन को पत्र भेेजा गया है। अगर कान्ट्रैक्ट बढ़ता है तो पहले की तरह सुचारू रूप से काम होगा। अगर कान्ट्रैक्ट नहीं बढ़ता है तोएलटी के माध्यम से सामान्य जांचे करायी जाएंगी।