मायावती ने कहा कि बीजेपी जातिवादी, संक्रीण मानसिकता से घिरी ही। जब से बीजेपी सत्ता में आई है आरएसएस के पूंजीवादी एजेंडे को लागू कर रही है। वह अपनी सांप्रदायिक सोच को थोप रही है, खासकर मजदूर, गरीब, दलित, पिछड़ों का उत्पीडन कर दिया है। दलितों के मामले में जातिवादी एजेंडे में रखकर पहले हैदराबाद रोहित फिर गुजरात का उना कांड और सहारनपुर कांड कराया गया। इनका पर्दाफास करने के लिए सहारनुपर के सब्बीरपुर गांव में दलितों का उत्पीड़न किया गया। उनके 60-70 घर जलाकर राख कर दिये गये। मां बहनों का उत्पीड़न किया।
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उन्होंने कहा कि मैंने अपने लोगों के हितों के लिए 18 जुलाई को राज्यसभा सदस्य पद से इस्तिफा दे दिया। बीजेपी के लोगों ने 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में ईवीएम में गड़बड़ी कर चोट पहुंचाया, जिससे हमारी पार्टी भी प्रभावित हुई। अभी हाल में यूपी चुनाव में सोची समझी साजिश के तहत ईवीएम में गड़बड़ी कर नुकसान पहुंचाया। इस बार हमारी पार्टी ईवीएम गड़बडी को लेकर चुप नहीं बैठी। आगे होने वाले चुनाव में बेइमानी रोकने क लिए हमारी पार्टी को सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा। हमें थोड़ी राहत मिली। अब इन्होंने सोची समझी साजिश के तहत सहारनपुर के सब्बीरपुर गांव में जुलूस निकालने के मामूली विवाद में बवाल कराया। एक दलित संगठन का उपयोग किया। खुलासा होनें पर सरकार को कुछ लोगों के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी। बसपा सुप्रीमो ने आरोप लगाते हुए कहा कि ठाकुर और दलितों के बीच जातीय संघर्ष के पीछे बीजेपी की मेरी हत्या कराने के शाजिश थी। साजिश थी कि दलितों की बड़े ढंग से उत्पीड़न होगा और जब मायावती सब्बीरपुर गांव में आंसू पोछने जरूर आयेगी और सिर्फ दलित समाज को समर्थन देगी, उत्तेजना वाला भाषण देगी। हमारी पाटी सर्वजन हिताया सर्वजन सुखाय की नीति पर कायम रही जिसके कारण बीजेपी की साजिश फेल हो गयी।
मायावती ने कहा कि बीजेपी ने साजिश के तहत दलित को राष्ट्रपति उम्म्मीदवार बनाया। फिर हमारे बयान के कारण कांग्रेस और अन्य विपक्ष दलों को दलित उम्मीदवार उतारना पड़ा। हम चाहते थे कि कोई चुनाव जीते लेकिन राष्ट्रपति दलित ही बने। बीजेपी के लोग मेरे सतकर्मो से बहुत दुखी है। सब्बीरपुर मुददे पर हमने राज्यसभा में अपनी बात रखनी चाही, लेकिन मुझे मौका नहीं दिया गया। इसलिए मैंने उसी दिन इस्तीफा दे दिया। कारण कि जब हम देश की सबसे बड़ी सस्था में मैं गरीब और दलितों के हित की बात नहीं रख सकती तो मेरे लिए राज्यसभा में बने रहने का औचित्य नहीं।
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वर्ष 1951 में नेहरू के रवैये से दुखी होकर अंबेडकर ने कानून मंत्री पद से इस्तीफा दिया था। महिलाओं के मुद्दे पर उन्होंने कुर्सी छोड़ी। वे चाहते थे पुरूष की तरह महिलाओं को बराबर का मौका मिले। इस्तीफे का दूसरा कारण दलितों और आदवासियों का आरक्षण ठीक से लागू नहीं करना था। खासतौर पर सरकारी नौकरियों में आरक्षण ठीक ढंग से लागू नहीं हो रहा था। वर्तमान सरकार भी प्रइवेट सेक्टर में आरक्षण की व्यवस्था किए बिना ही प्रमुख विभागों को निजीकरण कर रही है। यह सरकार इस तरह आरक्षण से वंचित कर रही है। अनुच्छेद 340 के तहत अन्य पिछड़ों को आरक्षण व अन्य सुविधाओं का ममाला भी अंबेडकर ने उठाया था। उन्होंने साफ किया था कि एससी एसटी के अलावा हिदू में कुछ और जातियां हैं, जिनकी हालत बहुत खराब। आने वाली सरकारों को 340 के तहत उन जातियों का आरक्षण देना चाहिए। अंबेडकर आयोग का गठन कराना चाहते थे लेकिन उस समय सरकार ने उनकी बात नहीं मानी और ना ही आयोग बनाया। इस रवैये से दुखी होकर त्यागपत्र दिया और उस समय स्पीकर ने उन्हें सदन में बोलने का मौका नहीं दिया था। तब अंबेडकर ने अपनी बात बाहर रखी थी। मैने अंबेडकर से प्रेरणा लेकर दलित पिछड़ो मुस्लिमों के हित में इस्तीफा दिया। by Ran Vijay Singh