बताते हैं कि 60 वर्षीया नाग लक्ष्मी पिछले चार वर्षो से कोटवा फार्म से लेकर डीआईजी आवास तक घूमा करती थी। विक्षिप्त होने तथा तमिल बोली यहां के लोगों को समझ में न आने के कारण कोई उसकी मदद भी नहीं कर पाता था। 11 माह पूर्व डीआईजी सुभाष चंद दुबे की नजर उसपर पड़ती तो उन्होंने मदद का फैसला किया। डीआईजी ने महिला के रहने की जिम्मेदारी महिला पुलिस को सौंप दी।
इसके बाद पुलिस ने एनजीओ की मदद ली, लेकिन बार-बार वृद्धा के भाग जाने से मुश्किलें बढ़ती गई। इस बीच एक तमिल भाषी चिकित्सक की मदद लेने से भी बात नहीं बनी तो डीआईजी ने खुद के स्नेह का हथियार चलाया। वृद्धा के खाने, पीने, कपड़े का ख्याल खुद से रखने लगे। इससे वृद्धा धीरे-धीरे ठीक होने लगी। सोशल मीडिया की मदद ली गई लेकिन निराशा मिली। समय बीतता गया जब महिला की सेहत में सुधार हुआ तो डीआईजी ने उसे कागज कागज कलम देकर इशारों में मोेबाइल नंबर लिखने को कहा। महिला ने कागज पर दो नंबर लिख दिया।
डीआईजी ने मोबाइल नंबर पर बात की तो पता चला कि वह तमिलनाडु प्रांत के कोयंबटूर निवासी संतोष कुमार का है। बातचीत में उसने अपनी सास के गुम होने की बात बतायी। फिर वीडियो काल की गयी तो उसने महिला को पहचान लिया और बताया कि वह उसकी सास नाग लक्ष्मी है। इसके बाद डीआईजी ने संतोष के आजमगढ़ आने की व्यवस्था की।
संतोष 31 दिसंबर को पहुंचे, तो पुलिस अधिकारियों के सामने अपनी सास की पहचान की। संतोष ने बताया कि उनके ससुर का देहांत वर्ष 2016 में हुआ तो विक्षिप्त हो गई नागलक्ष्मी वर्ष 2017 की गर्मियों में लापता हो गयी। स्वजनों ने ढूढ़ने का प्रयास किया लेकिन थक-हारकर बैठ गए थे कि एक फोन काल ने पूरे परिवार की खुशियां लौटा दीं। इसके बाद एक जनवरी को खुद स्टेशन जाकर डीआईजी ने संतोष और उसकी सास को ट्रेन से कोयंबटूर रवाना किया।
BY Ran vijay singh