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इस वजह से मुलायम सिंह यादव ने छोड़ी आजमगढ़ सीट, अब सपा से ये हो सकते हैं दावेदार

locationआजमगढ़Published: Jan 22, 2018 04:26:24 pm

Submitted by:

Akhilesh Tripathi

2014 की मोदी लहर में बड़ी मुश्किल से जीते थे मुलायम, पूरे कुनबे को सीट बचाने के लिए करनी पड़ी थी मशक्कत

Mulayam

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रणविजय सिंह

आजमगढ़. समाजवादी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष व आजमगढ़ के सांसद मुलायम सिंह यादव के बाद अब राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी साफ कर दिया है कि मुलायम सिंह यादव मैनपुरी से चुनाव लड़ेगें। अखिलेश के बयान से जिले की राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है। इसका कारण यह है कि ज्यादातर लोग यह पहले से ही मान रहे थे कि मुलायम सिंह यहां से दोबारा नहीं लड़ेंगे। पिछले चार साल में सिर्फ दो बार आजमगढ़ आये वह भी सीएम के साथ। जनता से सांसद की दूरी और योगी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री द्वारा मुलायम सिंह के गुमशुदगी के पोस्टर लगवाने के बयान के बाद सपा की तरफ से कोई प्रतिक्रिया का न आना भी कहीं न कहीं इस तरफ इशारा कर रहा था कि सपा इस मुद्दे पर कोई बखेड़ा नहीं चाहती।

मुलायम सिंंह यादव के मैनपुरी से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद यह माना जा रहा है कि आजमगढ़ में सपा को कोई नया योद्धा ढूंढना होगा जो पार्टी के लिए आसान नहीं होगा। 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह को बड़े अंतर से जिताने के लिए पूरी सरकार और उनका परिवार लगा था। इसके बाद भी हार जीत का अंतर 63 हजार ही पहुंच पाया था। खुद मुलायम सिंह ने कहा था कि अगर परिवार नहीं लगता और यहां के नेताओं के भरोसे रहते तो चुनाव हार जाते। अब उनके यहां से चुनाव न लड़ने पर भाजपा और बसपा को खुद की राह आसान दिख रही है। कारण कि स्थानीय सपा में इस कद का कोई नेता नहीं है जो भाजपा के बाहुबली रामाकंत का मुकाबला कर सके। वहीं बसपा भी इस बार मुख्तार अंसारी के बेटे पर दांव खेलने का मन बना रही है।
पिछले चुनाव में बमुश्किल मिली थी जीत

वर्ष 2014 के चुनाव की बात करें तो उस समय आजमगढ़ में दो कैबिनेट, एक राज्य और आधा दर्जन दर्जा प्राप्त मंत्री थे। मुलायम सिंह यादव यहां से चुनाव लड़े तो भाजपा ने उनके खिलाफ रमाकांत यादव और बसपा ने शाहआलम को मैदान में उतारा। उस चुनाव में मुलायम का पूरा कुनबा प्रचार के लिए आजमगढ़ में उतरा था तो मंत्रियों की फौज भी उतार दी गयी थी इसके बाद भी 58.4 प्रतिशत पोल मतों में मुलायम सिंह मात्र 340306 मत ही हासिल कर सके थे। यानि उन्हें मात्र 35.44 प्रतिशत मत मिला था। जबकि बीजेपी के रमाकांत यादव ने 277102 यानि 28.86 प्रतिशत मत हासिल किया था। बसपा को 27.76 प्रतिशत यानी 266528 मत मिले थे। मुलायम सिंह ने बीजेपी के रमाकांत यादव को मात्र 63204 मतों से पराजित किया था। बसपा को मिले मतों से साफ है कि उस समय जब सपा सत्ता में थी तब भी उसे मुस्लिम मतदाताओं को खुलकर समर्थन नहीं मिला था।
चुनाव जीतने के बाद मुलायम सिंह यादव सिर्फ चीनी मिल का शिलान्यास और उद्घाटन करने आजमगढ़ आये थे। इस दौरान उनके लापता होने का पोस्टर तक आजमगढ़ में लगा। दो दिन पहले योगी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने आजमगढ़ दौरे के दौरान मुलायम सिंह यादव की चुटकी भी ली थी। उन्होंने कहा था कि सांसद का पोस्टर लगवा देते हैं ताकि उनकी तलाश शुरू हो सके। अब पूर्व सीएम अखिलेश द्वारा यह साफ करने कि मुलायम मैनपुरी से चुनाव लड़ेंगे, उसके बाद राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गयी है। वैसे मुलायम मुलायम सिंह यादव ने एक पखवारा पूर्व स्वयं एक निजी कार्यक्रम में साफ कर दिया था कि वे अगला चुनाव मैनपुरी से ही लड़ेंगे।
अब इन पर दांव लगा सकती है सपा

अब अखिलेश के बयान के बाद सपाइयों की पेशानी पर बल साफ दिख रहा है। कारण कि अगर सबकुछ ठीक रहा था भाजपा से बाहुबली रमाकांत यादव का 2019 में मैदान में उतरना तय है और सपा के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो रमाकांत का मुकाबला कर सके। पिछले चुनाव में बाहुबली दुर्गा प्रसाद यादव और बलराम यादव टिकट के दावेदार थे। जिलाध्यक्ष हवलदार यादव को टिकट भी मिला था लेकिन चुनाव बाद में मुलायम सिंह यादव लड़े। अब मुलायम के न लड़ने पर ये तीनों लोग फिर टिकट की दावेदारी कर सकते है लेकिन दुर्गा प्रसाद यादव और बलराम यादव को पहले रमाकंत यादव लोकसभा में मात दे चुके है। ऐसे में सपा के किसी मजबूत नेता की तलाश बड़ी चुनौती होगी।
वहीं मुलायम के नहीं लड़ने पर बसपा को भी मौका दिख रहा है। कारण यह कि पिछले चुनाव में बीजेपी और बसपा के बीच मात्र 1.10 प्रतिशत मतों का अंतर था। जबकि उस चुनाव में शाहआलम पूरी तरह दबाव में थे। ऐसे में माना जा रहा है कि बसपा मुस्लिम और दलित कंबिनेशन को और मजबूत करने के लिए बाहुबली मुख्तार अंसारी या उनके पुत्र को मैदान में उतार सकती है जो हाल में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी के फागू चौहान को कड़ी टक्कर दिये थे।

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