उलेमा काउंसिल के नेता एम आसिफ ने कहा नोटबंदी राजनैतिक षडयंत्र नहीं, देशहित में अच्छा शगुन।
आजमगढ़. केन्द्र सरकार और पीम नरेन्द्र मोदी के लिये नोटबंदी के विरोध के बीच यूपी से एक अच्छी खबर भी है। आतंकियों को बेकसूर मारे जाने का सरकारों पर आरोप लगाने वाले और मुस्लिमों के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाने वाले कट्टर मुस्लिम राजनैतिक दल के नेता ने नोटबंदी के फैसले का समर्थन किया है। यहां तक कहा है कि मैं राजनीतिक रूप से पीएम नरेन्द्र मोदी का कट्टर विरोधी हूं और रहूंगा, पर उन्होंने जो नोटबंदी का फैसला लिया है उसमें कोई राजनैतिक षड्यंत्र मुझे नहीं दिखायी देता। यह देश के लिये अच्छा शगुन है।
यह बयान किसी कहीं और से नहीं बल्कि मुलायम सिंह यादव के संसदीय क्षेत्र और समाजवादी पार्टी के गढ़ आजमगढ़ से आया है। बयान देने वाले भी कोई और नहीं राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल के नेता एम आसिफ लोहिया हैं। आसिफ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उस घोषणा का स्वागत किया है, जिसमें उन्होंने भारतीय मुद्रा एक हजार और पांच सौ के नोटों को आठ नवंबर की रात से अवैध घोषित कर दिया था। इस कदम के तत्काल बाद तो राजनैतिक दलों ने उनका समर्थन किया पर दूसरे ही दिन बदल गए और उसके बाद से लगातार पीएम इस फैसले को लेकर विपक्ष के निशाने पर हैं। ऐसे में एक कट्टर मुस्लिम राजनैतिक दल के कट्टर नेता का समर्थन मिलना उनके लिये राहत है।
आसिफ ने कहा कि वह प्रधानमंत्री के साहसी कदम की तारीफ करते हैं। राजनैतिक दृष्टि से मैं भले ही प्रधानमंत्री का कट्टर विरोधी हूं, लेकिन 1000 व 500 रुपये के नोटों को बदले जाने का समर्थन करता हूं। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार, कालाबाजारी और नकली नोटों का चलन रोकने का दूसरा कोई विकल्प नहीं था। इससे देश में काले धन पर अंकुश लगाने में काफी हद तक मदद मिलेगी। सरकार का यह कदम सकारात्मक दिशा में उठाया गया कदम है।
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि नोट बदलवाने में गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को जो परेशानियां हो रही हैं उसे रोकने के लिए यदि सरकार ने पहले ही गंभीरता पूर्वक विचार किया होता तो ये नौबत न आती। जगह-जगह विद्यालयों तथा पंचायत भवनों में शिविर लगा कर नोटों के आदान प्रदान की व्यवस्था सुनिश्चित किया गया होता तो आज बैंकों के सामने लम्बी कतारों में खड़े लोगों की मृत्यु न होती। उन्होंने कहा कि हालात के मुताबिक प्रचलित मुद्रा को अवैध घोषित करना तथा उसके स्थान पर दूसरी मुद्रा जारी करना राजनैतिक षडयंत्र नहीं, बल्कि देशहित में एक अच्छा शगुन है। इससे देश के आर्थिक ढांचे को बल मिलेगा।
भारत के अन्दर मुस्लिम शासकों ने भी आर्थिक सुधार हेतु अपने शासनकाल में मुद्रा को परिवर्तित किया था। 14वीं शताब्दी में सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने तांबे का सिक्का बदलने का फरमान जारी किया था। जब उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुंच गया, प्रत्येक गांव और घरों में तांबे का सिक्का बनाने का रिवाज आम हो गया तो बेबश होकर सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने देश के आर्थिक ढांचे को बचाने तथा जनता को परेशानियों से निजात के लिए तांबा युक्त सिक्के को वापस लेकर अपनी प्रजा को सोने का सिक्का दिया।