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आस्था के साथ यहां मिलती है ऐतिहासिक धरोहरों की झलक, सिख ही नहीं हिंदू व मुसलमान भी टेकते हैं मत्था

locationआजमगढ़Published: Apr 02, 2021 02:03:33 pm

-निजामाबाद के गुरुद्वारे में प्राचीन शस्त्रों के साथ हैं हस्तलिखित ग्रन्थ
-उदासीन पंथ के संस्थापक श्रीचन्द्र जी महराज ने भी किया तप
-दुख भंजन कुएं के जल से होता है सभी दुखों का विनाश
-चरण पादुका साहिब गुरुद्वारा सिख ही नहीं बल्कि हिंदू समाज के भी आस्था का है केंद्र

चरणपादुका साहिब गुरुद्वारा

चरणपादुका साहिब गुरुद्वारा

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
आजमगढ़. आस्था के साथ ऐतिहासिक और प्राचीन धरोहरों को समेटे हुए है निजामाबाद का चरणपादुका साहिब गुरुद्वारा। यहां गुरु नानक देव, गुरु तेग बहादुर व दसवें गुरु गोविंद सिंह के साथ ही उदासीन पंथ के संस्थापक व गुरु नानक देव जी के पुत्र श्रीचन्द्र जी महराज ने भी तप किया था। गुरु अमरदास की वंशावली से बाबा कृपालदास जी गुरु नानक देव के पवित्र स्थलों की खोज करते हुए निजामाबाद पहुंचे और यहीं पर रुक गये थे। यहीं उनके एक पुत्र ने जन्म लिया जिनका नाम बाबा साधु सिंह था और उनके साथ सौ सिंहों का जत्था हुआ करता था। गुरुद्वारे में आज भी पुराने शस्त्र नेजे, ढाल, तलवार, कवच, भाले, बन्दूक, कटार आदि मौजूद हैं।

गुरुनानक द्वार

1974 में यहां स्थित ऐतिहासिक दुख भंजन कुएं में की गयी खुदाई में मिले हैं अन्य प्राचीन हथियार भी यहां मौजूद है। मान्यता है कि कुएं के जल से स्नान करने पर मिर्गी, कुष्ठ जैसे असाध्य रोग समाप्त हो जाते हैं। यही नहीं गुरुद्वारे में गुरुओं द्वारा हस्त लिखित गुरु ग्रंथ साहब एवं गुरु गोविंद द्वारा लिखित दशम ग्रंथ भी उपलब्ध हैं। ऋषि मुनियों की तपोस्थली रही धरा पर सिखों के प्रथम गुरु नानक देव के भी पवित्र पांव लगभग चार सौ वर्ष पूर्व निजामाबाद में पड़े थे और उन्होंने तमसा नदी के किनारे साधना की थी। आज भी गुरुद्वारे की शान कायम है।

दुख भंजन कुंआ

आजमगढ़ जनपद मुख्यालय से 20 किमी दूर निजामाबाद में स्थित चरण पादुका साहिब गुरुद्वारा पौराणिक महत्ता को समेटे सिख धर्मावलम्बियों की आस्था का केन्द्र है। इस गुरुद्वारे की महत्ता के बाबत बताया जाता है कि तकरीबन चार सौ वर्ष पूर्व सिख धर्म के प्रथम गुरु नानक देव जी महाराज अपना एकेश्वरवाद व मानववाद का संदेश देने के लिए समूचे देश में भ्रमण कर रहे थे। उसी दौरान नानक देव निजामाबाद में पधारे और कस्बे के उत्तरी भाग में स्थित तमसा नदी के पावन तट पर ठहरे और यही पर रहकर साधना की। इस दौरान नानक जी मानवता का संदेश देते थे और क्षेत्रीय जन नानक जी के उपदेश सुनने के लिए जुटते थे।


जन श्रुुतियों के अनुसार उसी दौरान एक कायस्थ परिवार का नव युवक काल के गाल में समा गया। अपने पति की दशा से व्यथित युवती नानक जी की साधना स्थली पर पहुंची और गुरु जी के समक्ष अपनी व्यथा सुनाई। युवती की व्यथा सुन नानक जी ने अपने तपो बल से युवक को जान दे दिया। घटना के बाद लोगों की आस्था का ठिकाना नहीं रहा। कस्बे में स्थित मध्य भाग में अपनी चरण पादुका छोड़ नानक देव उपदेश के लिए दूसरे ठौर पर चल दिये। इस स्थली पर पड़ी चरण पादुका के साथ लोगों की आस्था भी जुड़ गयी। धीरे-धीरे यह स्थान गुरुद्वारे के रूप में परिवर्तित हो गया। इसी स्थली पर प्रथम गुरु की तपो स्थली देख गुरु तेग बहादुर जी भी पधारे और नानक जी की तपो स्थली पर तप करना शुरू किया। उसी दौरान कस्बे में पानी की किल्लत देख गुरु जी ने अपनी तपो स्थली के पास कुंआ खुदवाया जिसका नामकरण दुख भंजन कुंआ हुआ। उसके पानी के सेवन करने से दुख दूर होता है। गुरु तेज बहादुर जी ने भी 21 दिन यहां तप किया। गुरु नानक जी व गुरु तेज बहादुर जी दोनों ने इस स्थली पर तप कर यहां की महत्ता ऐसी बढ़ायी कि सिख धर्म की यह स्थली अपने गुरुओं की तप भूमि के कारण काफी महत्वपूर्ण हो गयी। सिख समाज का हर व्यक्ति इस स्थली पर मत्था टेकना पुण्य समझता है।

खोदाई में प्राप्त प्राचीन हथियार

गुुरु नानक व तेग बहादुर की चरण पादुका मौजूद होने के कारण इस स्थली का नाम चरण पादुका साहिब पड़ा। गुरुद्वारे में उस दौरान की हस्तलिखित 20 ग्रन्थ मौजूद हैं। वैसे हस्तलिखित ग्रन्थों की संख्या सौ के आस-पास थी लेकिन उसमें 20 ही सुरक्षित पड़े हुए हैं। बताया जाता है कि दूसरा कोई ऐसा गुरु द्वारा नही है जहां गुरु नानक जी, गुरु तेग बहादुर, गोविन्द सिंह व श्रीचन्द्र जी ठहरे हों और तप किये हों। नानक व तेग बहादुर जी ने अपनी खड़ाऊं छोड़ी हो और इतने ग्रन्थ मौजूद हों। सिख समुदाय के लिए यह स्थली आस्था का केन्द्र बिन्दु है। गुरुद्वारे में आज भी दुख भंजन कुंआ, हस्तलिखित ग्रन्थ, सिखों के उपदेश, हथियार व पोशाक गरिमा बनाए हुए है। गुरु नानक जी की जयंती पर यहां काफी संख्या में सिख समुदाय के लोग नतमस्तक होते हैं। सिख समुदाय के लिए गुरुद्वारा आज भी आस्था के मामले में शान कायम किये हुए है।

BY Ran vijay singh

हस्तलिखित गुरुग्रंथ साहिब
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