पूर्वांचल में प्रयागराज को छोड़ दिया जाय तो सर्वाधिक दस विधानसभा सीट आजमगढ़ में है। आजमगढ़ में हमेंशा से सपा बसपा का दबदबा रहा है। चाहे राम लहर रही हो या फिर मोदी लहर बीजेपी यहां कभी अच्छा नहीं कर पाई है। वर्तमान में पांच विधानसभा सीट सपा, चार बसपा और एक भाजपा के पास है। पड़ोसी जनपदों की बात करें तो इनमें वर्ष 2014 के बाद से ही बीजेपी का वर्चश्व कायम है। मऊ की चार विधानसभा सीटों में से तीन पर बीजेपी का कब्जा है। एक सीट से निर्दल मुख्तार अंसाारी विधायक है। इसी तरह बलिया 7 सीटों में से एक सपा, एक बसपा के पास है बाकी पांच पर बीजेपी का कब्जा है। जौनपुर की सात विधानसभा सीटों में पांच पर बीजेपी एक पर उसकी सहयोगी अपना दल का कब्जा है जबकि एक सीट बसपा और दो सीट सपा के पास है। इसी तरह गाजीपुर की सात सीटों में तीन पर बीजेपी, दो पर उसकी पूर्व सहयोगी सुभासपा और 2 पर बसपा का कब्जा है।
पूर्वांचल पर ओवैसी की नजर लंबे समय से है। सपा सरकार के दौरान आजमगढ़ व आसपास के जिलों में ओवैसी ने अपनी पैठ बनाने की भरपूर कोशिश की लेकिन ज्यादातर मौकों पर उन्हें आजमगढ़ आने की अनुमति नहीं मिली। इसके बाद भी अल्पसंख्यक बाहुल्य क्षेत्रों में उनकी गहरी पैठ है। एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष शौकत माहुली भी इसी जिले के हैं। बिहार में मिली पांच विधानसभा सीटों पर जीत के बाद पार्टी कार्यकर्ताओें का मनोबल बढ़ा है। ओवैसी के यूपी चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद से ही पूरे पूर्वांचल में संगठन विस्तार की कोशिश हो रही है। वहीं ओवैसी ने सुभासपा से गठबंधन कर पूर्वांचल के करीब 8 प्रतिशत राजभरों को भी पाले में करने का दाव चल दिया है।
दूसरी तरह आम आदमी पार्टी भी यूपी चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। इस दल ने पिछला लोकसभा चुनाव भी लड़ा था लेकिन सपा-बसपा गठबंधन और मोदी लहर में वह कोई करिश्मा नहीं कर सकी थी। पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष राजेश यादव उस समय आजमगढ़ सीट से सपा मुखिया अखिलेश यादव के खिलाफ मैदान में उतरे थे लेकिन वे तीन हजार मतों का आंकड़ा नहीं छू सके थे। लालगंज प्रत्याशी व घोसी प्रत्याशी का हाल और भी बुरा था। ऐसे में आप की भी चुनौतियां कम नहीं दिख रही है।
खास बात है कि ओवैसी हो या आम आदमी पार्टी इन्हें पूर्वांचल में सिर्फ बीजेपी की चुनौती का सामना नहीं करना है बल्कि सपा बसपा भी इनके राह में रोड़ा बनेंगे। कारण कि यह क्षेत्र तीन दशक तक इन दलों का गढ़ रहा है। आज भी यादव मतदाता पूरी ताकत के साथ सपा और दलित (जाटव) बसपा के साथ खड़ा है। वर्ष 2014 से अब तक यहां का अति पिछड़ा व अति दलित बीजेपी के प्रति गोलबंद है। जिसका फायदा पार्टी को चुनाव दर चुनाव मिल रहा है। यहां आप या एआईएमआईएम को कोई करिश्मा करना है तो जातीय ध्रुवीकरण को तोड़ना होगा जो इतना आसान नहीं है।
वैसे ओवैसी ने सुभासपा सहित नौ दलों के साथ गठबंधन कर अपनी स्थिति थोड़ी मजबूत की है लेकिन क्या यह चुनाव जीतने के लिए काफी है। शायद नहीं क्योेंकि यहां किसी एक जाति के दम पर चुनाव नहीं जीता जा सकता है। यहीं वजह है कि जब जब यूपी में जातीय समीकरण को साधने में जो दल नाकाम हुआ है वह सत्ता से दूर हो गया है। रहा सवाल आप का तो यह दल अभी एकला चलो की राह पर दिख रहा है। कारण कि मोर्चे मंे उसे जगह नहीं मिली है और मायावती पहले ही कह चुकी हैं कि यूपी और उत्तराखंड में अकेले चुनाव लड़ेंगी। आप का यूपी में अकेले चुनाव लड़ने का अनुुभव काफी खराब रहा है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि ऊंट किस करवट बैठता है।
BY Ran vijay singh