सामाजिक कार्यकर्ता सकीना का कहना है कि ट्रिपल तलाक को लेकर आये सुप्रिम कोर्ट के फैसले से हम सभी खुश है। उनका कहना है कि तीन तलाक का जो मुद्दा था, बुनियादी हक जो संविधान ने उन्हें दिया है जो हमारा समानता का अधिकार है। उसका कही न कही उसमें वाइलेसन था। क्योंकि जब निकाह होता है तो दोनों की मर्जी ली जाती है और तलाक-तलाक बोल देना और तलाक हो जाना तो कही न कही समानता के अधिकार का हनन था। कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है और हम इससे खुश है। उन्होंने कहा कि 2002 में शमीम आरा का एक जजमेन्ट आया था उस जजमेन्ट को भी इसमें जोड़ा गया है। जिसमें लिखा गया है कि अगर तलाक हो रहा है तो रिजेन्बल उसकी वजह होनी चाहिए। वही महिलाओं का कहना है कि विदेश में रह रहे लोग फोन पर तलाक दे देते थे, यह गलत था, क्योंकि उनके बच्चे भी होते है और वह कहा जायेगी। इसलिए वे इस फेसले से हम बहुत खुश है।
एनएसयूआई की पूर्व जिलाध्यक्ष हया नोमानी का कहना है कि इस्लाम में तलाक की एक अच्छी व्यवस्था है लेकिन इसका विकृत रूप तीन तलाक के रूप में सामने आया है।तीन तलाक महिला शोषण को बढ़ावा दे रहा है। आज सुप्रिम कोर्ट द्वारा तीन तलाक पर रोक लगाये जाने का न सिर्फ मैं बल्कि हर शोषित और जागरूक महिला स्वागत करती है। तीन तलाक के नाम पर राजनीति करने वाले दल और संगठनों से भी हम समर्थन की उम्मीद करते है।
मदरसतुल इस्लाह के प्रचार्य मुफ़्ती मौलाना मोहम्मद सैफुल इस्लाम ने कहा कि कोर्ट का फ़ैसला ग़ैर शरई है यदि फैसला तलाक़ देने पर उसको मान लेते और तलाक़ देने पर उसको मुजरिम मानते हुए सज़ा दी जाती तो उसका स्वागत किया जाता। अल्लाह के कानून के आगे दुनियावी कानून बेमानी है।
जमीयत उलेमा ऐ हिन्द के प्रान्तीय उपाध्यक्ष व शहर काज़ी मुफ़्ती मौलाना अशफ़ाक़ अहमद आज़मी ने कहा कि तीन तलाक़ दे कर घर से फौरन बाहर निकाल देने का इस्लाम ने कभी भी अच्छा नहीं माना है। इसी दुश्वारी को सर्वोच्च न्यायालय ने छः महीने के लिये आरज़ी तौर पर राहत देने का कार्य किया है।