बता दें कि, आजमगढ़ जिले में दो संसदीय सीट है। जिले को सपा बसपा का गढ़ कहा जाता है। वर्ष 2014 के चुनाव में मोदी लहर के चलते पहली बार लालगंज सुरक्षित सीट बीजेपी की नीलम सोनकर जीतने में सफल रही थीं। जबकि आजमगढ़ सीट पर सपा से मुलायम सिंह यादव ने जीत हासिल की थी। सभी राजनीतिक दल वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटे हैं। प्रबल संभावना है कि, सपा बसपा और कांग्रेस का गठबंधन बीजेपी के खिलाफ मैदान में उतरे। ऐसे में भाजपा के लिए यहां विजय रथ को आगे बढ़ाना आसान नहीं होगा। कारण कि, यह बीजेपी का कभी अच्छा जनाधार नहीं रहा है। गत लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत की एक मात्र वजह थी मोदी लहर।
अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि, हाल में हुए विधानसभा चुनाव में जिले की दस सीटो में से बीजेपी को मात्र एक सीट मिली थी। वहीं भी इसलिए कि उक्त सीट पर रमाकांत यादव का सीधा प्रभाव है और उनके पुत्र मैदान में थे। बाकी नौ सीटों पर बीजेपी का हार का सामना करना पड़ा। पांच सीट सपा और चार सीट बसपा के खाते में गई। लोकसभा चुनाव में एक बार फिर नीलम सोनकर को लालगंज संसदीय सीट से टिकट का दावेदार माना जा रहा है। कारण कि वे यहां से सीटिंग एमपी है। इसके अलावा दारोगा सरोज, मंजू सरोज आदि भी टिकट की दावेदारी कर रही है।
लेकिन हाल के दिनों में नीलम सोनकर की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है। कारण कि लालगंज संसदीय क्षेत्र के लोगों ने ही उनका विरोध शुरू कर दिया है। लोग उनके कामकाज से संतुष्ट नजर नहीं आ रहे हैं। ऐसे में चर्चा इस बात की शुरू होे गयी है कि, वह मोदी के लोकप्रियता वाले टेस्ट में फेल हो सकती है। खुद भाजपाई भी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं।
कारण कि, इनका भी मानना है कि नीलम का अपना वोट बैंक नहीं है पिछला चुनाव वे मोदी के नाम पर जीती थी। इसके पीछे तर्क भी है। पूर्व में नीलम सोनकर 2005-06 में बसपा से नगर पालिका चेयर मैन का चुनाव लड़ी थी, लेकिन उन्हें बुरी तरह हार का सामना पड़ा था। बीजेपी के किसी प्रत्याशी को यहां सिर्फ मोदी का नाम ही जिता सकता है। वहीं नीलम के समर्थकों का कहना है कि, विरोधी उनका टिकट कटवाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया जा रहा है।
by रणविजय सिंह