गौर करें तो सपा-सुभासपा में सियासी तलाक हो चुका है। वहीं बसपा ने भी कहीं न कही यह संकेत दे दिया है कि अभी उसे ओमप्रकाश की जरूरत नहीं है। एनडीए से भी अभी ओमप्रकाश के में रुचि नहीं दिखया है। ऐसे में हालात और भी दिलचस्प हो गए हैं। कारण कि वर्ष 2019 के चुनाव में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी अकेले दम पर मैदान में उतरी थी लेकिन उसके प्रत्याशी जमानत नहीं बचा पाए थे लेकिन जब 2022 में वे सपा के साथ मिलकर लड़े तो बीजेपी को बड़ा झटका दिया। गाजीपुर सहित कई जिलों में बीजेपी का खाता नहीं खुला। लोकसभा उपचुनाव में ओमप्रकाश सपा के साथ थे इसके बाद भी बीजेपी राजभर बाहुल्य सीटों पर सपा से अधिक वोट हासिल करने में सफल रही। ऐसे में बीजेपी का हौसला बढ़ा है।
डेढ़ साल बाद लोकसभा चुनाव होना है। ऐसे में ओमप्रकाश के वोट बैंक पर सबकी नजर है। बीजेपी ने तो पूर्वांचल में राजभर नेताओं की पूरी फौज उतार दी है। कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर के अलावा पूर्व विधायक विजय राजभर, वरिष्ठ नेता राम सूरत राजभर, पूर्व सांसद हरिनारायण राजभर सहित दर्जन भर नेताओं को आठ प्रतिशत राजभरों को साधने के लिए लगाया गया है। वहीं बसपा के प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर स्वयं मैदान में हैं तो सपा भी बड़ा दाव खलने के मूड में दिख रही है। पार्टी पूर्व मंत्री डा. रामदुलार को राजभर मतोें को साधने के लिए न केवल आगे किया है बल्कि माना जा रहा है कि उन्हें आजमगढ़ का जिलाध्यक्ष भी बनाया जा सकता है। ऐसे में हालात दिलचस्प हो गए हैं। देखना दिलचस्प होगा कि किसका दाव सफल होता है और कौन सा दल आठ प्रतिशत राजभर मतों को साधने में सफल होता है।