बता दें कि जिले में दस विधानसभा सीटें है। इन सीटों पर हमेशा से सपा और बसपा का दबदबा रहा है। वर्ष 2017 को छोड़ दे तो पिछले डेढ़ दशक में इस जिले में जिस पार्टी को अधिक सीट मिली उसने यूपी पर राज किया। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने दस में से नौ सीटे हासिल की थी। बसपा इस तरह का प्रदर्शन कभी नहीं कर सकी है। अब तक वह 2007 में सर्वाधिक 6 सीट जीतने में सफल हुई थी। रहा सवाल भाजपा का तो आजमगढ़ में उसका प्रदर्शन हमेशा खराब रहा है। वर्ष 1991 की राम लहर में पार्टी यहां सिर्फ दो सीट जीत पाई है। इसके सिर्फ 1996 में एक सीट जीती थी। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में जब पार्टी ने यूपी में 325 सीट हासिल की उस समय भी उसे आजमगढ़ में सिर्फ एक सीट नसीब हुई।
अब सभी की नजर 2022 के चुनाव पर है। अखिलेश यादव आजमगढ़ के सांसद है। ऐसे में सपा के लिए अधिक सीट जीतने की चुनौती है। सपा यादव मुस्लिम मतदाताओं की गोलबंदी से पुराना प्रदर्शन दोहराना चाह रही है लेकिन बसपा ने मुस्लिम प्रदेश अध्यक्ष बनाकर सपा की बेचैनी बढ़ा दी है। सूत्रों की मानें बसपा आजमगढ़ का जिलाध्यक्ष भी मुस्लिम को बनाना चाहती है। अगर ऐसा होता है तो सपा की मुश्किल और बढ़ेगी। कारण कि जिले में चार सीट ऐसी है जिसपर मुस्लिम मतदाता निर्णायक है।