गौर करें तो आजमगढ़ सदर विधानसभा का गठन वर्ष 1952 में हुआ था। शुरू के दौर में यहां कांग्रेस का वर्चश्व हुआ करता था। वर्ष 1985 में यहां पहली बार दुर्गा प्रसाद यादव जेल से चुनाव लड़े और जीत गए। इसके बाद उन्हें सिर्फ वर्ष 1993 में हार मिली है जब उन्हें बसपा के राजबली यादव ने पराजित किया था। इसके बाद दुर्गा प्रसाद कोई चुनाव नहीं हैं। दुर्गा राजनीतिक सफर की बात करें तो दुर्गा को वर्ष 1985 में आईएनडी ने मैदान में उतारा था। जेल में रहते हुए भी दुर्गा चुनाव जीत गए। वर्ष 1993 में सपा का गठन होने के बाद वे मुलायम के साथ चले गए और सपा के टिकट पर जीत हासिल की। इसके बाद दुर्गा 1996, 2002, 2007, 2012 और 2017 में इस सीट से विधायक चुने गए।
एक बार फिर समाजवादी पार्टी दुर्गा प्रसाद को ही मैदान में उतार रही है। वर्ष 2017 के चुनाव में दुर्गा के भतीजे प्रमोद यादव बसपा में शामिल हो गए थे और खुलकर बसपा के प्रत्याशी भूपेंद्र सिंह मुन्ना का साथ दिया था लेकिन मुन्ना सिंह तीसरे स्थान पर पहुंच गए थे। जबकि दुर्गा ने बीजेपी के अखिलेश मिश्र को करीब 23 हजार वोटों से हराया था। पहली बार बीजेपी यहां रनर रही थी। वर्ष 2022 के चुनाव में बीजेपी से अखिलेश मिश्र की दावेदारी काफी मजबूत है लेकिन इसी सीट से पूर्व विधायक सर्वेश सिंह सीपू की पत्नी सगड़ी विधायक वंदना सिंह भी टिकट मांग रही है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि मैदान में उतरता कौन है।
सपा सरकार में राज्यमंत्री रहे डा. राम दुलार राजभर का कहना है कि वर्ष 2017 में जब अदर बैकवर्ड बीजेपी के साथ लामबंद था तब भी विपक्ष हमारे करीब नहीं पहुंचा था लेकिन इस चुनाव में समाज का प्रत्येक तबका सपा के साथ खड़ा है। ऐसे में हम पिछले वर्ष की अपेक्षा बड़ी जीत हासिल करेंगे। वहीं बीजेपी जिला महामंत्री ब्रजेश यादव का कहना है कि आजमगढ़ भले ही सपा का गढ़ रहा है, लेकिन इस बार यहां बदलाव की बयार चल रही है। विकास से कोसों दूर रहे आजमगढ़ में अब डिवेलपमेंट नजर आता है। आप जिस एक्सप्रेसवे को पकड़कर लखनऊ से आजमगढ़ महज तीन घंटे में आए हैं, पहले ऐसा नहीं था। कुछ साल पहले तो लखनऊ से आजमगढ़ आने में सात-आठ घंटे लग जाते थे। इसके अलावा हमारी सरकार ने विश्वविद्यालय, एअरपोर्ट सहित कई महत्वपूर्ण काम किए हैं। जनता हमारे साथ है।