शहीद राम समुझ के परिवार को सरकार ने गैस एजेंसी दी और कुछ आर्थिक सहायता भी। राम समुझ के भाई प्रमोद के प्रयास से शहीद पार्क भी बन गया है। 30 अगस्त को उनकी याद में यहां एक मेले का आयोजन होता है।
बता दें कि आजमगढ़ जनपद के सगड़ी तहसील क्षेत्र के नत्थूपुर गांव में 30 अगस्त 1997 को किसान परिवार में जन्मे रामसमुझ पुत्र राजनाथ यादव तीन भाई बहनों में बड़े थे। उनका सपना सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना था। उनका यह सपना वर्ष 1997 में पूरा हुआ जब वारणसी में वे आर्मी में भर्ती हो गये। इनकी ज्वाइनिंग 13 कुमाऊ रेजीमेंट में हुई और पहली पोस्टिंग सिचाचिन ग्लेशियर पर हुई। तीन महीने बाद सियाचिन ग्लेसियर से नीचे आने के बाद परिवार के कहने पर राम समुझ ने छुट्टी के लिए अप्लाई किया। छुट्टी मंजूर हो गयी और परिवार के लोग शादी की तैयारी में जुट गए। इसी बीच कारगिल का युद्ध शुरू हुआ और राम समुझ की छुट्टी रद्द कर कारगिल भेज दिया गया।
जिस दिन जन्म उसी दिन शहीद अब इस दुर्भाग्य कहे या फिर इत्तेफाक राम समझु का जन्म 30 अगस्त 1977 को हुआ था और काररिल में दुश्मनों से लड़ते हुए वे 30 अगस्त 1999 को शहीद हो गये। राम समुझ की शहादत पर परिवार को गर्व है। शहीद के पिता राजनाथ यादव, भाई प्रमोद यादव और माता प्रतापी देवी कहती है कि उन्हें आगे भी मौके मिला तो अपने परिवार के बच्चों को सेना में भेजेंगी।
शहीद होने के कहानी सैनिक की जुबानी राम समुझ के साथ कारगिल युद्ध लड़ने वाले 13 कुमाऊ रेजीमेंट के सैनिक मध्य प्रदेश निवासी दुर्गा प्रसाद यादव बताते हैं कि वह दिन उन्हें आज भी याद है जब 56/85 पहाड़ी पर हमले को कहा गया। उनकी टुकड़ी में एक कमांडर और सात जवान थे। उन्हें रात में चढाई करनी थी और सुबह 5 बजकर 5 मिनट पर अटैक करना था। पाक सैनिक पहाड़ी की चोटी पर थे। उपर से पत्थर भी गिराते थे तो भारतीय सेना को क्षति पहुचती थी। एक तरफ पड़ाही बिल्कुल सीधी थी जिसपर चढना आसान नहीं था। उस तरफ नजर भी कम होती थी। इसलिए उसी तरफ से रात में चढ़ने का फैसला किया गया। इस पहाड़ी पर 56 फुट के बाद 85 फुट तक केवल रस्सी से ही चढ़ा जा सकता है। इसलिए इसे 56/85 नाम दिया गया।
राम समुझ को था तेज बुखार दुर्गा बताते हैं कि योजना के मुताबिक हमने रात में नौ बजे चढ़ाई शुरू की। बीच रास्ते में पता चला कि राम समुझ को तेज बुखार है। हमने नायक से कहा कि राम समुझ को वापस भेज दे लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया। रामसमुझ ने भी कहा कि वह लड़ना चाहता है। हमारे पास बस एर्नजी बिस्कुट थे। हम रात एक बजे चोटी से काफी करीब पहुंच गये। तय हुआ कि रस्सी के सहारे यहीं आराम करते है और भोर में बाकी दूरी तय कर निर्धारित समय पर हमला करेंगे।
आठ में सात हुए शहीद दुर्गा के मुताबिक भोर में दुबारा चढ़ाई शुरू हुई और सुबह 5 बजकर 5 मिनट पर पाक चौकी पर हमला किया गया। प्लान के मुताबिक हमला एक साथ करना था लेकिन राम समुझ उत्साहित होकर सबसे पहले पाक सैनिकों के करीब पहुंचे और हमला कर दिये। हमले में पाकिस्तान के 21 सैनिक मारे गए जबकि भारत की तरफ से नायक सहित सात लोग शहीद हो गये। शायद भाग्य ने उन्हें बचा लिया। इसके बाद जब फतह की सूचना दी गयी तो दूसरी टुकड़ी वहां पहुंची और उन्हें चार्ज देने के बाद वे लौट आये। जिसे उन्होंने चार्ज दिया वह राम समुझ साथी बब्बन थे दोनों ने आजमगढ़ में एक साथ शिक्षा हासिल की थी।
सरकार से मिली यह सहायता राम समुझ के शहीद होने के बाद केंद्र सरकार ने परिवार को गैस एजेंसी दिया। राज्य सरकार ने 15 लाख रूपये की आर्थिक सहायता दी गयी, 16 बिस्वा भूमि भी सरकार द्वारा दी गयी। वहीं 13 कुमाऊ रेजीमेंट द्वारा मकान बनवाया गया।