बता दें कि वर्ष 2007 तक यह सीट सरायमीर के नाम से जानी जाती थी। उस समय यह सीट सुरक्षित हुआ करती थी। तब भी यहां सपा बसपा के बीच सीधी जंग देखने को मिलती थी। वर्ष 1991 की राम लहर में बीजेपी यहां खाता खोलने में जरूर सफल हुई थी। वर्ष 2012 में सीट सामान्य कर इनका नाम बदलकर दीदारगंज किया गया। इसके बाद सपा ने आदिल शेख को उम्मीदवार बनाया था। उस समय आदिल शेख ने बसपा के कद्दावर नेता पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर को हराकर सीट सपा की झोली मेें डाल दी थी लेकिन वर्ष 2017 के चुनाव में सुखदेव राजभर के हाथों आदिल शेख को हार का सामना करना पड़ा था।
वर्ष 2022 के चुनाव में आदिल शेख को टिकट का प्रबल दावेदार माना जा रहा था लेकिन पिछले दिनों सुखदेव राजभर ने अपने पुत्र कमलाकांत को सपा की सदस्यता दिला थी। उसी दौरान सपा और सुभासपा का गठबंधन हुआ तो बीजेपी ने राजभर मतोें को अपने साथ बांधकर रखने के लिए आजमगढ़ में विश्वविद्यालय का नाम महाराजा सुहेलदेव के नाम पर रखकर बड़ा दाव चल दिया। सपा ने बीजेपी के इस दाव के काट में अब सपा ने दीदारगंज में राजभर मतों की अधिक संख्या को देखते हुए कमलाकांत राजभर को उम्मीदवार बना दिया है। सपा का मानना है कि इस सीट पर उसे सुखदेव राजभर के निधन से उपजी सहानुभूति का भी लाभ मिलेगा। इसका प्रभाव बगल की फूलपुर व मेंहनगर आदि सीटों पर भी पड़ेगा।
वहीं दूसरी तरफ सपा की मुश्किल भी बढ़ती दिख रही है। कारण कि जिलेे में दीदारगंज सीट ही ऐसी है जहां 24 प्रतिशत मुस्लिम हैं। आदिल शेख का टिकट कटने से मुस्लिम मतदाताओं में नाराजगी साफ दिख रही है। वहीं बसपा ने बाहुबली भूूपेंद्र सिंह मुन्ना को मैदान में उतारा है जिनकी पकड़ क्षत्रिय के साथ ही मुस्लिम मतोें मेें भी है। मुन्ना और आदिल को सुखदेव विरोधियों मेें गिना जाता है। ऐसे में सपा के सामने भीतरघात का खतरा होता जो पार्टी की मुश्किल बढ़ा सकता है। वहीं बीजेपी से डा. कृष्ण मुरारी विश्वकर्मा का लड़ना तय माना जा रहा है। कृष्ण मुरारी भी अति पिछड़ों को साधने की पूरी कोशिश करेंगे।