1967 में आयी फिल्म मिलन अमर गीत सावन का महीना पवन करे शोर, फिल्म अनजाना का गीत रिमझिम के गीत सावन गाए भीगी भीगी रातों में, दो रास्ते का गीत छुप गये सारे नजारे क्या बात हो गई, मेरा गांव मेरा देश का गीत कुछ कहता है ये सावन और आया सावन झूम के का शीर्षक गीत बदरा छाए झूले पड़ गए हाए आदि ने लोगों के बीच अमिट छाप छोड़ी। इन फिल्मों के हिट होने के पीछे बड़ी वजह ये सावन के गीत रहे। लेकिन अब फिल्मां से भी सावन के गीत लुप्त होते जा रहे है। वहीं समय के साथ यह परम्परा लगभग समाप्त होती दिख रही है। सावन का महीना चल रहा है नागपंचमी का पर्व सात अगस्त को मनाया जायेगा लेकिन अब तक न तो झूले पड़े और ना ही कजरी सुनायी दे रही है। भोजपुरी कवि राम प्रकाश शुक्ल निर्मोही कहते है कि पहले हम अपनी परम्पराओं का विशेष ख्याल रहते थे कारण कि इन्हीं से हमारी पहचान है लेकिन आज समाज आधुनिकता की अंधी दौड़ में इतने आगे निकल चुका है कि उसे सिर्फ अपना ख्याल है। उसके पास समय नहीं है कि वह पीछे मुड़कर देख सके। यह हमारी संस्कृति और समाज के लिए काफी बुरा दौर है। हम खुद को खोते जा रहे है।
BY-Ranvijay Singh