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महागठबंधन से नाराज हुआ यह दल, यूपी की 80 लोकसभा सीटों पर लड़ेगा चुनाव

locationआजमगढ़Published: Jan 28, 2019 04:26:52 pm

Submitted by:

Akhilesh Tripathi

गठबंधन में मुस्लिम दलों को जगह नहीं मिलने से नाराजगी

Akhilesh yadav and Mayawati

अखिलेश यादव और मायावती

आजमगढ़. गठबंधन के बाद सपा बसपा को 2019 लोकसभा चुनाव में अपनी जीत भले ही पक्की दिख रही हो लेकिन हकीकत में इनकी परेशानी बढ़ती दिख रही है। गठबंधन में मुस्लिम दलों को प्रतिनीधित्व न मिलने से नाराज उलेमा कौंसिल छोटे दलों के साथ गठबंधन कर सभी अस्सी सीटों पर प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर रही है। वहीं गठबंधन में उचित सीट न मिलने पर पीस पार्टी भी सपा बसपा की मुसीबत बढ़ा सकती है।

बता दें कि यूपी में सपा बसपा के गठबंधन के बाद सिर्फ दो सीट अन्य दलों के लिए छोड़ी गयी है। पिछला चुनाव बसपा ने राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल के साथ गठबंधन कर लड़ी थी। उस समय उलेमा कौंसिल ने बसपा से यूपी में एक भी सीट नहीं लिया था। आजमगढ़ व आसपास के जिलों में बसपा की जीत में उलेमा कौंसिल का काफी योगदान था। इसलिए उलेमा कौंसिल को भरोसा था कि गठबंधन में उन्हें पीस पार्टी व अन्य मुस्लिम दलों को जगह मिलेगी और गठबंधन कम से कम दस सीटों पर इनके प्रत्याशियों का मौका देगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 38-38 सीटों पर सपा और बसपा चुनाव लड़ रही है। वहीं गठबंधन ने दो सीट कांग्रेस के लिए छोड़ दिया है। बची दो सीटों को रालोद या पीस पार्टी को देने की बात चल रही है।

सूत्रों की माने तो गठबंधन की तरफ से फीस पार्टी को एक सीट का ऑफर किया गया है साथ ही अखिलेश यादव उनके एक प्रत्याशी को अपने सिंबल पर लड़ाना चाहते है लेकिन इसके लिए पीस पार्टी तैयार नहीं हैं वह तीन सीट अपने लिए व एक सीट निषाद पार्टी के लिए मांग रही है। इसलिए गठबंधन की संभावना बनती नहीं दिख रही है। वहीं उलेमा कौंसिल भी गठबंधन में जगह न मिलने से नाराज है।

उलेमा कौंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना आमिर रशादी पहले कह चुके हैं कि यह गठबंधन मुसलमानों को उनका हक देने के बजाय उनकों वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। 22 प्रतिशत मुस्लिम समाज के नेताओं को शून्य हिस्सेदारी देकर मुफ्त में सिर्फ भाजपा का डर दिखा उनका वोट लेना चाहती हैं जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल के आहवान पर प्रदेश के मुसलमानों का एक बड़ा तबका बसपा के साथ खड़ा हुआ था और बसपा 19 सीट जीतने में कामयाब रही जिसमें पूर्वांचल की 11 सीटों पर जीत में राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल की निर्णायक भूमिका रही थी।

उनका कहना है कि अगर गठबंधन में मुस्लिम दलों को समान हिस्सेदारी नहीं मिलती है तो राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल अपने समाज और शोषित-वंचित, दलित व पिछड़े समाज के लिए लड़ने वाले अन्य दलों तथा समान विचारधारा वाले दूसरे दलों के साथ मिल कर एक नया गठबंधन को खड़ा करेगी और भाजपा व सपा-बसपा के विरुद्ध एक नया विकल्प देगी। अगर उलेमा कौंसिल छोटे दलों के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरती है तो वह सीट भले ही न जीत पाए लेकिन गठबंधन को नुकसान पहुंचाने में सक्षम होगी। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में उलेमा कौंसिल के लड़ने के कारण ही बीजेपी आजमगढ़ में खाता खोल पाई थी।
BY- RANVIJAY SINGH

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