पूर्व सांसद उमाकांत यादव भी इस कार्रवाई से काफी नाराज है। उन्होंने कहा कि भूमिहीन होने के कारण उक्त भूमि वर्ष 1988 में मेरे नाम से पट्टा हुई थी। वर्ष 1990-91 से खसरा खतौनी में में मेरा नाम दर्ज है। काफी पहले हमने यहां भवन का निर्माण कराया और उसपर अपना नाम लिखवाया। पिछले पचास साल में न तो यहां कभी गांधी आश्रम लिखा गया और ना ही लालचंद का नाम आया। अब लालचंद यादव फूलपुर कोतवाल और तहसीलदार से मिलीभगत कर उनका नाम मिटवाकर गांधी आश्रम लिखवा दिया। यह पूरी साजिश मेरी भूमि हड़पने के लिए की गयी है। इंस्पेक्टर और तहसीलदार का लालचंद से क्या संबंध है मैं नहीं जानता लेकिन यह लोग मिलकर मेरे साथ जबरदस्ती कर रहे हैं। साथ ही सरकार को भी बदनाम किया जा रहा है। मुझे उम्मीद है कि सरकार मेरे साथ न्याय करेगी।
कारण कि यह साजिश का खेल लंबे समय से चल रहा है। किसी ने पूर्व में मेरा फर्जी हस्ताक्षर कर पट्टे को निरस्त करा दिया था तब मैं जेल में था। जेल से छूटने के बाद कमिश्नर के यहां अपील की। अपील पर पट्टा मेरे नाम से बहाल कर दिया गया। इस बीच वर्ष 2006-07 में बसपा शासन में जेल जाने पर किसी ने राजस्व परिषद में दरखास्त देकर मेरा नाम निरस्त करा दिया। इस पर राजस्व परिषद में अपील की है। अपील स्वीकार कर ली गई है। उन्होंने बताया कि मुकदमा दर्ज कराने वाले लालचंद यादव श्रीगांधी आश्रम संगठन के किसी पद पर नहीं हैं। उनकी बगल में ही जमीन है। साजिश के तहत मेरी जमीन हड़पने की नीयत से फर्जी मुकदमा दर्ज करा कर बदनाम कर रहे हैं। इसमें प्रशासन मिला हुआ है।