बात हो रही है आमजगढ़ (सदर) विधानसभा सीट की। यहां हुए पिछले दस चुनावो पर गौर करें तो 1977 में कांग्रेस के भीमा प्रसाद, 1980 में इदिरा कांग्रेस के राम कुंवर सिंह ने जीत हासिल की थी। इसके बाद वर्ष 1985 में दुर्गा प्रसाद यादव ने राजनीति में कदम रखा और जेल में रहते हुए निर्दल मैदान में उतरे। दुर्गा ने कांग्रेस के जगपति राय को पराजित कर चुनाव में जीत हासिल की और माननीय बन गये। इसके बाद 1989 और 1991 के चुनाव में उन्होंने जनता दल के टिकट पर जीत हासिल की।
इसके बाद वर्ष 1993 के विधानसभा चुनाव में बसपा के राजबली यादव ने दुर्गा प्रसाद को बुरी तरह मात दी और विधायक चुने गये। इस चुनाव में भाजपा के सुनील राय दूसरे स्थान पर रहे। इसके तीन साल बाद वर्ष 1996 में हुए चुनाव में दुर्गा ने फिर जीत हासिल की। इसके बाद से अबतक वे अपराजेय बने हुए है। यानि 1996, 2002, 2007 और 2012 व 2017 का चुनाव वे लगातार जीत चुके हैं। दुर्गा के खिलाफ वर्ष 2007 से बसपा लगातार क्षत्रियों पर दाव लगा रही है। वर्ष 2007 के चुनाव में दुर्गा 43.96 प्रतिशत मत पाकर विजयी रहे थे जबकि बसपा के रमाकांत सिंह को 35.39 प्रतिशत मत मिला था। वर्ष 2012 के चुनाव में दुर्गा प्रसाद यादव रिकार्ड 93461 मत पाकर विजयी हुए थे जबकि दूसरे स्थान पर रहे बसपा के सर्वेश सिंह सीपू को 62067 मत मिले थे। रहा सवाल भाजपा का तो पार्टी ने जयनाथ सिंह को मैदान में उतारा था जो पूरी तरह फिसड्डी साबित हुए थे और मात्र 8561 मत तक सिमट गये थे। वहीं कांग्रेस के करूणाकांत मिश्र को 6633 मत पर संतोष करना पड़ा था। निर्दल प्रत्याशी हरिकेश विक्रम श्रीवास्तव ने 4206 मत हासिल किया था।
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में भी दुर्गा का वर्चश्व कायम रहा। इस चुनाव में दुर्गा प्रसाद 88087 मत पाकर विजई रहे थे। पहली बार यहां भाजपा दूसरे नंबर पर पहुंची थी। बीजेपी के अखिलेश मिश्र को 61825 मत मिला था। वहीं बसपा के भूपेंद्र सिंह मुन्ना को 58185 मत प्राप्त कर तीसरे स्थान पर था। सपा से गठबंधन के कारण कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं उतारा था। सब मिलाकर यह क्षेत्र सपा का गढ़ बन चुका है। इसके बाद वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में सपा मुखिया अखिलेश यादव आजमगढ़ संसदीय सीट से चुनाव लड़े तो यहां की जनता ने उन्हें सिर आंखो पर बैठाया। अब एक बार फिर विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी है। सभी दल सपा के इस तिलिस्म को भेदने की तैयारी में जुटे है।
माना जा रहा है कि बसपा एक बार फिर क्षत्रिय पर दाव लगा सकती है। सुशील कुमार सिंह टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे है। वहीं ब्राह्मण उम्मीदवार ने पहली बार बीजेपी को यहां रनर बनाया था। ऐेसे में उम्मीद यही है कि एक बार फिर पार्टी अखिलेश मिश्र गुड्डू पर दाव लगाएगी। वैसे अब तक किसी दल ने अपना पत्ता नहीं खोला है। सपा से दुर्गा का लड़ना तय है। चर्चा इसी बात की है कि क्या इस चुनाव में दुर्गा का किला विपक्ष भेद पाएगा। अगर विपक्ष उन्हें हराने में सफल होता है तो यह उनके लिए बड़ी उपलब्धि होगी। कारण कि सीट पर अब सिर्फ दुर्गा नहीं बल्कि सपा मुखिया की भी प्रतिष्ठा लगी होगी। वैसे इस चुनाव में दुर्गा की राह भी पहले तरह आसान नहीं दिख रही है। एक तरफ अन्य पिछड़ों का झुकाव भाजपा की तरफ बढ़ा है तो दूसरी तरफ दुर्गा के घर में ही उनके विरोधी खड़े हो गये है जिसका फायदा उठाने की पूरी कोशिश विपक्ष करेंगा।
नाम के पीछे जुडा है इतिहास
आजमगढ़. तीन तरह से आदि गंगा तमसा से घिर इस शहर को आजम खां नाम के शासक ने बसाया था। उन्हीें के नाम पर इस जिले का नाम आजमगढ़ पड़ा। स्वतंत्रता संग्राम मंे भी यहां के लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
जातीय राजनीति हमेशा रही है हावी
आजमगढ़. पिछले तीन दशक से यहां जातीय राजनीति हाबी रही है। खासतौर पर सपा और बसपा के अस्तित्व में आने के बाद जितने भी चुनाव हुए उसमें जातीय समीकरण हाबी दिखे। वर्ष 2022 के चुनाव में भी जातीय समीकरण हाबी दिख रहा रहा है। जिसे सपा और बसपा अपने पक्ष में मान रही है। वहीं भजपा लोकसभा चुनाव में अति पिछड़ों के समर्थन से उत्साहित है। इनका मानना है कि यदि सवर्ण और अति पिछड़े उनके साथ आ गये तो वह दुर्गा को मात देने में सफल होगी।
आजमगढ़ सदर विधानसभा
कुल मतदाता – 369804
पुरूष मतदाता – 203473
महिला मतदाता – 166316
तृतीय ***** – 15
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आजमगढ सदर जातिगत आंकडे
ब्राम्हण – 25 हजार
क्षत्रिय – 45 हजार
वैश्य – 50 हजार
मुस्लिम – 50 हजार
यादव – 70 हजार
छलित – 60 हजार
अन्य – 70 हजार अन्य