बता दें कि यूपी विधानसभा चुनाव में चंद महीने बचे हैं। सभी राजनीतिक दलों की नजर पूर्वांचल पर है। ओवैसी से लेकर ओमप्रकाश राजभर और चंद्रशेखर रावण तक पूर्वांचल को साधने में जुटे हैं। वहीं शिवपाल यादव अब तक सपा से गठबंधन की आस नहीं छोड़े हैं। उन्होंने 11 अक्टूबर तक का समय अखिलेश यादव को दिया है। प्रसपा के प्रमुख महासचिव अभिषेक सिंह आंशू ने साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी सपा से गठबंधन और विलय दोनों पर राजी है। दोनों ही स्थिति में उन्हें सम्मानजनक सीट चाहिए। आजमगढ़ में भी उन्होंने सम्मानजनक सीट लेने की बात कही।
वहीं अगर 11 अक्टूबर तक सपा अपना रुख साफ नहीं करती है तो प्रसपा 12 अक्टूबर को सामाजिक परिवर्तन यात्रा शुरू करेगी। यह यात्रा मथुरा से निकलकर 14 अक्टूबर को आजमगढ़ पहुंचेगी। यहीं से पार्टी पूरे पूर्वांचल को साधने की कोशिश करेगी। वैसे अब तक अखिलेश की चुप्पी से साफ है कि शायद ही चाचा भतीजा एक मंच पर आए। वैसे भी पिछले विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस से गठबंधन किया था लेकिन एक भी सीट कांग्रेस को नहीं दी थी। 2022 में भी सपा के पांच एमएलए सहित कुल दस सीटों पर मजबूत दावेदार दावेदारी कर रहे हैं जिसमें दीदारगंज सीट से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर के पुत्र को लड़ाने की संभावना है। वहीं प्रसपा से राम दर्शन यादव, अभिषेक सिंह, रामप्यारे यादव सहित दर्जन भर नेता किसी भी हालत में चुनाव लड़ना चाहते हैं।
अगर गठबंधन नहीं होता है तो शिवपाल यादव का भागीदारी संकल्प मोर्चा के साथ जाना तय माना जा रहा है। ऐसे में अखिलेश यादव की मुश्किल बढ़ेगी। कारण कि भागीदारी संकल्प मोर्चा में जाने के बाद शिवपाल को आसानी से आजमगढ़ की कुछ सीटों पर लड़ने का मौका मिल जाएगा। इसका सीधा नुकसान सपा को होगा। कारण कि पिछले दो चुनाव में शिवपाल की वजह से कम से कम मुबारकपुर सीट पर सपा को भारी नुकसान उठाना पड़ा था।