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मुलायम के गढ़ में आसान नहीं होगी अखिलेश की राह, शिवपाल गुट बो सकता है कांटे

locationआजमगढ़Published: Oct 16, 2021 05:07:34 pm

Submitted by:

Ranvijay Singh

-गठबंधन की संभावना समाप्त होते ही सपा का किला ढहाने की तैयारी में जुटी प्रसपा
-जल्द ही आजमगढ़ में प्रसपा करेगी बड़ा सम्मेलन, खुद शिवपाल होंगे शामिल

प्रतीकात्मक फोटो

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पत्रिका न्यूज नेटवर्क
आजमगढ़. लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद सपा मुखिया संगठन के साथ ही चुनाव तैयारियों को भी धार देने में जुटे हैं। खुद अखिलेश यादव रथ पर सवार हो चुके है लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव उनके लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होने वाला है। एक तरफ ओवैसी लगातार चुनौती पेश कर रहे हैं तो दूसरी तरफ सपा से गठबंधन की संभावना क्षीण होने के बाद प्रसपा भी कमर कसकर मैदान में उतर चुकी है। पार्टी ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। वहीं संगठन को धार देने के लिए जल्द ही कार्यकर्ता सम्मेलन की तैयारी की जा रही है। जिसमें स्वयं शिवपाल यादव भाग ले रहे हैं।

बता दें कि पूर्वांचल में प्रयागराज के बाद सर्वाधिक 10 विधानसभा सीट आजमगढ़ में है। मंडल की बात करें तो यहां 21 विधानसभा सीट है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव सपा का प्रदर्शन 2012 के मुकाबले काफी खराब रहा था। आजमगढ़ सपा को मात्र पांच सीट मिली थी। पार्टी को 2012 के मुकाबले चार सीट का नुकसान हुआ था। एक सीट सपा प्रसपा के कारण हारी थी।

आने वाले चुनाव में सपा का प्रसपा से गठबंधन की संभावना व्यक्त की जा रही थी लेकिन इसकी उम्मीद क्षीण हो चुकी है। कारण कि मिशन-2022 के तहत चाचा और भतीजा दोनों ने अलग-अलग रथ पर सवार हो चुके है। वहीं दूसरी तरफ ओवैसी ने पूर्वांचल में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। भागीदारी संकल्प मोर्चा के बैनर तले वे मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं।

ओवैसी की नजर मुस्लिम मतों पर है। वहीं अखिलेश से गठबंधन न होने की दशा में प्रसपा पहले ही सभी सीटों पर लड़ने का दावा कर चुकी है। पार्टी संगठन को मजबूत करने में जुटी है। इसके लिए जल्द ही कार्यकर्ता सम्मेलन किया जाएगा। जिसमें खुद शिवपाल यादव भाग लेंगे। पिछले चुनाव में प्रसपा की वजह से ही मुबारकपुर सीट सपा के हाथ से निकल गयी थी। इस बार अगर प्रसपा सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारती है तो मुश्किल और बढ़ सकती है।

वहीं सपा के राह में पार्टी की गुटबाजी भी रोड़ा बन सकती है। इस समय पार्टी चार गुटों में बंटी हुई है। हवलदार गुट, दुर्गा गुट, बलराम गुट और रमाकांत यादव गुट अपनों को चुनाव लड़ाने के लिए पूरी ताकत झोंक रहा है। पूर्व में गुटबाजी का नुकसान सपा उठा चुकी है। अगर इसे ठीक नहीं किया गया तो वर्ष 2022 में मुश्किल और बढ़ सकती है।

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