बता दें कि यूपी विधानसभा चुनाव में सभी दलों की नजर पूर्वांचल की 123 सीटों पर हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक बीजेपी का प्रदर्शन पूर्वांचल में काफी अच्छा रहा है। सवर्ण के साथ अतिपिछड़ों की लामबंदी का परिणाम था कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रचंड बहुमत हासलि किया था। उस चुनाव में सुभासपा बीजेपी के साथ थी। अब 2022 के चुनाव में सुभासपा सपा के साथ खड़ी है।
सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भागीदारी संकल्प मोर्चा के साथ गठबंधन कर न केवल राजभरों के नेता ओमप्रकाश राजभर को साथ लाने में सफल रहे बल्कि कई अन्य पिछड़ी जातियों के संगठन और छोटे दलों को भी साध लिया। इससे निश्चित तौर पर बीजेपी की मुश्किल बढ़ी है। कारण कि अब बीजेपी अति पिछड़ों पर एकछत्र राज का दावा नहीं कर सकती है। वैसे बीजेपी ने अखिलेश यादव के दाव के काट के तौर पर 13 नवंबर को आजमगढ़ विश्वविद्यालय का नाम सुहेलदेव विश्वविद्यालय रखकर बड़ा दाव चल दिया है। इससे कम से कम मतदाताओं में असमंजस की स्थिति उत्पन्न करने में बीजेपी सफल रही है।
कारण कि बीजेपी ने पिछले दिनों सुहेलदेव स्मारक का भी लोकापर्ण किया था। ऐसे में अब राजभर मतदाता यह सोचने के लिए मजबूर हुए है कि उनका हित वास्तव में किसके दाव है। अब सपा की नजर महिलाओं और क्षत्रिय मतों पर है। यही वजह है कि पार्टी ने महिलाओं को साधने के लिए एक सप्ताह पूर्व आजमगढ़ की रहने वाली सुनीता सिंह को महिला सभा का राष्ट्रीय सचिव बनाया और दो दिन पूर्व लगे हाथ आजमगढ़ मंडल का प्रभारी भी बना दिया। सुनीता सिंह महिला सभा की जिलाध्यक्ष भी रह चुकी है। उनकी पैठ आजमगढ़ के साथ ही गाजीपुर व मऊ जनपद के भी मतदाताओं में मानी जाती है। एसे में एक बार फिर बीजेपी की मुश्किल बढ़ी है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी का अगला दाव क्या होगा।