आजमगढ़. वर्ष 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में करारी मात खाने वाली सपा अब 2022 के चुनाव में अपने 2012 के सफल दाव को आजमाएगी। सपा का यह दांव दोबारा कामियाब हुआ तो भाजपा की मुश्किल बढ़ जाएगी। कारण कि पिछड़ी जातियों की गोलबंदी के कारण ही वर्ष 2017 में बीजेपी 325 सीटों की बड़ी जीत हासिल की थी। अब सपा एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग की कोशिश में जुटी है।
बता दें कि 2012 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा ने पूरे प्रदेश में साइकिल यात्रा की थी। साथ ही जातीय समीकरण साधने के लिए सोशल इंजीनियरिंग भी खूब की थी। उस चुनाव में पार्टी को जबरदस्त फायदा हुआ था और सपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी थी। इसके बाद वर्ष 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग तथा पिछड़ों की पार्टी के प्रति गुटबंदी का कारण सपा और बसपा को करारी हार का सामना करना पड़ा।
यहीं नहीं वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन कर मैदान में उतरी लेकिन बीजेपी इन्हें मात देने में सफल रही। कारण कि अति पिछड़ा और अति दलित बीजेपी के साथ खड़ा नजर आया था। अब 2022 का विधानसभा चुनाव होने वाला है। सभी दलों में सत्ता की छटपटाहट साफ दिख रही है। जातीय समीकरण साधने के लिए पिछड़ी और अति दलितों को सभी लुभाने में जुटे हैं। यहीं नहीं दल बदल का खेल भी खूब खेला जा रहा है।
सपा लगातार धरना प्रदर्शन व साइकिल यात्रा के जरिये लोगों को लुभाने में जुटी है। वहीं पार्टी अब तक विरोधी दलों के अति पिछड़े नेताओं को भी तोड़ने में सफल रही है। सूत्रों की माने तो इस बार पार्टी की प्राथमिकता सिर्फ यादव और मुस्लिम नहीं बल्कि अन्य जातियां भी होंगी। टिकट में इसका पूरा ध्यान रखा जाएगा। हर सीट पर जातीय समीकरण को साधने की कोशिश होगी। यहीं नहीं पार्टी का अति पिछड़ों और अति दलितों पर अधिक फोकश होगा। वहीं चुनाव के पहले पार्टी बड़े आंदोलन की रणनीति बना रही है। अगर कोरोना संक्रमण समाप्त होता है तो अखिलेश यादव वर्ष 2012 की तरफ फिर पूरे यूपी में साइकिल यात्रा निकाल सकते हैं