बता दें कि सहकारी समितियों की स्थापना ही किसानों की मदद के लिए हुई थी। जिला सहकारी बैंक को किसानों का बैंक माना जाता है। समितियों के सदस्य किसान सीजन में खाद बीज व रसायन यहां से उधार लेते थे और फसल तैयार होने पर कर्ज जमा कर देते थे। इससे किसानों पर आर्थिक बोझ नहीं पड़ता था लेकिन सरकारों की उपेक्षा के चलते आज साधन समितियों की स्थिति दयनीय हो गयी है। समितियों को जिदा रखने के लिए प्रदेश सरकार ने कुछ समितियों को धनराशि अवमुक्त किया है लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरा के समान है।
प्रदेश में 25 प्रतिशत से अधिक समितियां डिफाल्टर पड़ी है। इनमें से कुछ समितियों का संचालन सदस्यों की अमानत से हो रहा है। बीज व उर्वरक की बिक्री के बाद प्रति बोरी 10 से 17 रुपये बचत में कर्मचारियों का वेतन दिया जाता है। सहकारी समितियों के संचालन के लिए अब ऋण भी नहीं मिलता। इसके पीछे दो कारण है। पहला तो बैंक और दूसरा सहकारी समितियों को करोड़ों रुपये का देय अभी तक बकाया है। नतीजा धीरे-धीरे समितियों डिफाल्टर होती जा रही है। इसका खामियाजा किसान भुगत रहे हैं।
आजमगढ़ की बात करें तो यहां 250 समितियों में केवल 175 है सक्रिय, 80 समितियां अब भी डिफाल्टर पड़ी है। रहा सवाल सरकारी सहायता का तो केवल 116 समितियों को मिली है। कुछ समितियों सदस्यों की अमानत पर चल रही है। धन के आभाव में यहां खाद बीज नहीं आ पाया। खरीफ सत्र में भारत सरकार ने किसानों को खाज-बीज की उपलब्धता के लिए राष्ट्रीय कृषि विभाग योजना के अंतर्गत कुल पांच लाख रुपए की धनराशि दी जो कहीं से भी पर्याप्त नहीं कही जा सकती है। एआर को-ऑपरेटिव रामकिकर द्विवेदी का कहना है कि प्रदेश सरकार की ओर से कुछ साधन सहकारी समितियों के लिए धनराशि दी गई है। जिससे खाद-बीज की उपलब्धता सुनिश्चित कराई जा रही है। कुछ समितियों को संचालन उनके सदस्यों द्वारा दी गई धनराशि से हो रहा है। ब्लाक स्तर पर जल्द ही रसायन उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है।