बता दें कि 14 अगस्त 2020 कोे तरवां थाना क्षेेत्र में हुई दलित प्रधान सत्यमेंव जयते की हत्या के बाद से ही आजमगढ़ दलित राजनीति का केंद्र बन गया है। कांग्रेस, सपा, बसपा, भीम आर्मी सभी दलित उत्पीड़न के मुद्दे को पिछलेे एक साल से हवा दे रही है। वहीं जनवरी 2021 में रौनापार थाना क्षेत्र के पलिया गांव में प्रधान के घर पुलिस के हमले के बाद दलित उत्पीड़न का मामला और तूल पकड़ लिया है।
पार्टी सेे नाराज बीजेपी के कई दलित नेता कांग्रेस का हाथ थाम लिए हैं तो बीजेपी डैमेज कंट्रोल के लिए लगातार दलित और अति पिछड़ों को संगठन में प्रमोट कर रही है। पिछड़ी जाति के नेता आनंद गुप्ता सहित कई को जिले से हटाकर क्षेत्रीय संगठन में जगह दी गयी है। वहीं भीम आर्मी और सपा की नजर सीधे तौर पर बसपा के वोट बैंक पर है। भीम आर्मी चीफ आजमगढ़ मेें जल्द ही दलित महा पंचायत करने वाले हैं।
दूसरी तरफ सपा ने बसपा के सबसे मजबूत स्तभ पूर्व विधानसभा सुखदेव राजभर को तोड़ लिया है। वैसेे तो सुखदेव राजभर ने राजनीति से सन्यास ले लिया है लेकिन उन्होंनेे अपने पुत्र कमलाकांत को अखिलेश के हवाले कर व मायावती पर पत्र के माध्यम से गंभीर आरोप लगा राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है। कारण कि आजमगढ़ सहित पूर्वांचल में करीब 8 प्रतिशत राजभर वोट हैं। राजभरों में ओम प्रकाश राजभर के बाद अगर किसी की सर्वाधिक पैठ है तो वह सुखदेव राजभर की है। ऐसे में सपा खुद को फायदे में महसूस कर रही है।
लेकिन इस राजनीतिक उलटफेर का दूसरा पक्ष भी सामने आने लगा है। उदाहरण के तौर पर दीदारगंज विधानसभा क्षेत्र से पूर्व विधायक आदिल शेेख पहले से टिकट की दावेदारी कर रहे है। इसके अलावा पूर्व मंत्री राम आसरे विश्वकर्मा और पूर्व मंत्री राम दुलार राजभर की भी यहीं से टिकट की दावेदारी है। अब कमलाकांत अगर पार्टी में शामिल होंगे तो सुखदेव अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ने के लिए उन्हें टिकट दिलाने की कोशिश करेंगे। चर्चा तो यहां तक है कि कमलाकांत पार्टी में शामिल ही टिकट के लिए होने वाले हैं ऐसे में सपा में गुटबंदी और भी बढ़ने का खतरा है। बहरहाल आगे क्या होगा यह तो समय बताएगा लेकिन आजमगढ़ दलित और पिछड़ों की राजनीति का केंद्र बनता जा रहा है। कारण कि ओमप्रकाश राजभर की भी सक्रियता इस समय सबसेे अधिक आजमगढ़ में दिख रही है।